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सेतुबंध
५८७ बार-बार उठने वाली चञ्चल तरङ्गों से वह परिमार्जित था, और प्रफुल्लित इलायची के वन से सुगन्धित था। यह तट हाथी की मद्धारा के समान शोभित हो रहा था।
सत्पुरुषों के संबंध की एक उक्ति देखियेते विरला सप्पुरिसा जे अभणन्ता घडेन्ति कज्जालावे | थोअ चिअ ते वि दुमा जे अमुणिअकुसुमनिग्गमा देन्ति फलं ॥३.६
-जो बिना कुछ कहे ही कार्य कर देते हैं, ऐसे सत्पुरुष विरले ही होते हैं। उदाहरण के लिये, बिना पुष्पों के फल देनेवाले वृक्ष बहुत कम होते हैं।
समर्थ पुरुषों को लक्ष्य करके कहा गया हैआहिअ समराअमणा वसणम्मि अ उच्छवे अ समराअमणा। अवसाअअविसमत्था धीरचिअ होन्ति संसए वि समत्था ॥
३.२० -समर्थ लोग संशय उपस्थित होने पर धीरता ही धारण करते हैं । संग्राम उपस्थित होने पर वे अपने आप को समर्पित कर देते हैं । सुख और दुःख में वे समभाव रखते हैं, और संकट उपस्थित होने पर विचार कर कार्य करते हैं।
वानरों द्वारा सेतु बाँधने का वर्णन पढ़ियेधरिआ भुएहि सेला सेलेहि दुमा दुमेहि घणसंघाआ। णविणजइ किं पवआसेउंबंधतिओमिणेन्ति णहअलम् ।। ७.५८
-वानरों ने अपनी भुजाओं पर पर्वत धारण कर लिये, पर्वतों के वृक्ष और वृक्षों के ऊपर परिभ्रमण करने वाले बादल ऊपर उठा लिये | यह पता नहीं चलता था कि वानरसेना सेतु को बाँध रही है अथवा आकाश को माप रही है।
राक्षसियों की कातरता का दिग्दर्शन कराया गया हैपिअअमवच्छेसु वणे ओवइअदिसागइन्ददन्तुल्लिहिए । वेवइ दट्टण चिरं संभाविअसमरकाअरो जुवइजणो ॥१०-६०
-प्रहार करने के लिये उपस्थित दिग्गज हाथी के दाँतों द्वारा अपने प्रियतम के वक्षस्थल पर किये हुए घावों को देखकर,