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वजालग्ग
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-यदि तुम्हें जाना हो तो जाओ, इस समय आलिंगन करने से क्या लाभ ? प्रवास के लिये जाने वाले लोग यदि मृतक (निष्प्राण ) का स्पर्श करें तो यह अमंगल सूचक है ।
लेकिन पति चला गया, केवल उसके पदचिह्न शेष रह गये । प्रोषितभर्तृका उन्हीं को देखकर सन्तोष कर लेती है। किसी पथिक को उस मार्ग से जाते हुए देखकर वह कह उठती है
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इय पंथे मा वचसु गयवइभणियं भुयं पसारे वि । पंथिय ! पियपयमुद्दा मइलिज्जइ तुझगमणेण ॥ - प्रोषितभर्तृका नारी अपनी भुजाओं को फैलाकर कहती
है, पथिक ! तू इस मार्ग से मत जा । तेरे गमन से मेरे प्रियतम के पचिह्न नष्ट हो जायेंगे ।
पति के वियोग में प्रोषितभर्तृका विचारी कापालिनी बन गई—
हत्थट्ठियं कवालं न मुयइ नूणं खणं पि खट्टगं । सातु विरहे बालय ! बाला कावालिणी जाया ॥'
- अपने सिर को हाथ पर रक्खे हुए ( खप्पर हाथ में लिये हुए ), वह खाट को नहीं छोड़ती ( अथवा खट्वांग को धारण किये हुए ) ऐसी वह नायिका तेरे विरह में कापालिका बन गई है।
सुगृहिणी के विषय में सुभाषित देखिये
भुंजइ भुंजियसेसं सुप्पर सुप्पम्म परियणे सयले । पढमं चे विबुइ घरस्स लच्छी न मा घरिणी ॥
- जो बाकी बचा हुआ भोजन करती है, सब परिजनों के
सो जाने पर स्वयं सोती है, सबसे पहले उठती है, वह गृहिणी नहीं, लक्ष्मी है ।
मिलाइये - /
१. अब्दुर्रहमान के संदेशरासक (२.८६ ) के साथ ।