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५८२ प्राकृत साहित्य का इतिहास हंस के संबंध में
एक्कण य पासपरिट्टिएण हंसेण जा सोहा ।
तं सरवरो न पावइ बहुएहि वि ढेंकसत्थेहिं । -पास में रहनेवाले एक हंस से जो सरोवर की शोभा होती है, वह अनेक मेढकों से भी नहीं होती। संसार में क्या सार है
सुम्मइ पंचमगेयं पुजिजइ वसहवाहणो देवो । हियइच्छिओ रमिजइ संसारे इत्तियं सारं ॥
-पंचम गीत का सुनना, बैल की सवारीवाले शिवजी का पूजन करना और जैसा मन चाहे रमण करना, यही संसार में सार है।
कोई नायक अपनी मानिनी नायिका को मना रहा हैए दइए! मह पसिन्जसु माणं मोत्तॄण कुणसु परिओसं । कयसेहराण सुम्मइ आलावो झत्ति गोसम्मि ॥
-हे दयिते ! प्रसन्न हो, मान को छोड़कर मुझे सन्तुष्ट कर । सबेरा हो गया है, मुर्गे की बाँग सुनाई पड़ रही है।
पति के प्रवास पर जाते समय नायिका की चिन्ताकल्लं किर खरहियओ पवसिहिइ पिओ त्ति सुव्वइ जणम्मि | तह वड्ढ भयवइनिसे ! जह से कल्लं चिय न होइ ।'
-सुनती हूँ, कल वह क्रूर प्रवास को जायेगा। हे भगवती रात्रि! तू इस तरह बड़ी हो जा जिससे कभी कल हो ही नहीं। बिदाई का दृश्य देखिये
जइ वञ्चसि वच्च तुम एण्हिं अवऊहणेण न हु कजं ।
पावासियाण मडयं छिविऊण अमंगलं होइ। मिलाइये१. सजन सकारे जायेंगे नैन मरेंगे रोय । या विधि ऐसी कीजिये फजर कबहूँ ना होहि ।।
-बिहारीसतसई।