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प्राकृत साहित्य का इतिहास द्वारका नगरी की पूर्वोत्तर दिशा में सिणवल्ली का उल्लेख है। प्रयागतीर्थ की उत्पत्ति बताई गई है। मगध, वरदाम और प्रभास नामक पवित्र तीर्थों से जल और मिट्टी लाकर उससे देवों का अभिषेक किया जाता था |
क्षत्रियों की अपेक्षा वणिक् लोग बहुत छोटे समझे जाते थे इसलिये क्षत्रिय अपनी कन्या उन्हें नहीं देते थे। आठ वर्प की अवस्था में कन्या की शादी हो जाने का उल्लेख है । गर्भ में शिशु के दाहिनी कोख में होने से पुत्र, बाई कोख में होने से पुत्री तथा दोनों के बीच में होने से नपुंसक पैदा होता है। पचास वर्ष के पश्चात् स्त्री गर्भ धारण करने के अयोग्य हो जाती है और ७५ वर्ष की अवस्था में पुरुष निर्बीज हो जाता है । ___ हाथी पकड़ने की विधि बताई है । एक बड़ा गड्ढा खोदकर उसके ऊपर घास वगैरह बिछा देते हैं। उसके दूसरी ओर एक हथिनी बाँध दी जाती है । उसे देखकर हाथी उसकी ओर दौड़ता है और गड्ढे में गिर पड़ता है। उसे कई दिन तक भूखा रक्खा जाता है, जब वह बहुत कमजोर हो जाता है तो उसे खींचकर राजा के पास ले जाते हैं। फिर उसे सूखे वृक्ष में चमड़े की रस्सी से बाँध दिया जाता है। शकुनों के फलाफल का विचार किया गया है। एक स्थल पर उट्ठिय क्षपक का उल्लेख है। ये लोग आजीवक मत के अनुयायी थे। ग्रंथ में आवश्यक, व्याख्याप्रज्ञप्ति, प्रज्ञापना, जीवाजीवाभिगम, पउमचरिय और उपमितिभवप्रपंचकथा को साक्षीरूप में उल्लिखित किया है।
उपदेशमालाप्रकरण मलधारी हेमचन्द्रसूरि की दूसरी उल्लेखनीय रचना उपदेशमाला या पुष्पमाला है ।' भवभावना की भाँति उपदेशमाला भी विषय, कवित्व और शैली की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
१. ऋषभदेवजी केशरीमल संस्था द्वारा सन् १९३६ में इन्दौर से प्रकाशित ।