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५०२ प्राकृत साहित्य का इतिहास था । उसने एक पुड़िया पर निम्नलिखित श्लोक लिखकर उसके पास भिजवाया
काले प्रसुप्तस्य जनार्दनस्य, मेघांधकारासु च शर्वरीषु । मिथ्या न भाषामि विशालनेत्रे, ते प्रत्यया ये प्रथमाक्षरेषु ॥
इस श्लोक के प्रत्येक पद के प्रथम अक्षरों को मिलाने से 'कामेमि ते' रूप बनता है, अर्थात् मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। उत्तर में रानी ने निम्नलिखित उत्तर भेजा
नेह लोके सुखं किंचिच्छादितस्यांहसा भृशम् । मितं (च) जीवितं नृणां तेन धर्मे मतिं कुरु ॥ चारों पादों के अक्षरों को मिलाकर 'नेच्छामि ते' रूप बनता है, अर्थात् मैं तुझे नहीं चाहती।'
पुष्पचूला की कथा में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, पैशाची, मागधी, मध्यउत्तर, बहिःउत्तर, एकालाप, और गत-प्रत्यागत नाम के प्रश्नोत्तरों का उल्लेख है।
संस्कृत प्रश्नोत्तर का उदाहरणकां पाति न्यायतो राजा ? विश्रसा बोध्यते कथं ? टवर्गे पंचमः को वा ? राजा केन विराजते ? धरणेन्दो कंधारेइ । केण व रोगेण दोब्बला होंति ? केण व रायइ सेण्णं ? पडिवयणं 'कुंजरेण' त्ति ॥
-राजा किसका न्यायपूर्वक पालन करता है ? पृथ्वी का (कुं)। कोई बात विश्वासपूर्वक कैसे समझाई जा सकती है ? वृद्ध पुरुषों के द्वारा (जरेण ) | टवर्ग का पाँचवाँ अक्षर कौन-सा है ? ण | धरणेन्द्र किसको धारण करता है ? तीनों लोकों को (कुं)। किस रोग से मनुष्य दुर्बल हो जाता है ? वृद्धावस्था से (जरेण)। किस सेना से राजा शोभा को प्राप्त होता है ? हाथी से (कुंजरेण)।
१. हरिभद्र की आवश्यकटीका में भी ये दोनों श्लोक आये हैं, देखिये पहले पृष्ठ २६३ । . .