________________
४९८ प्राकृत साहित्य का इतिहास तीर्थ में आचार्य महागिरि ने पादोपगमन धारण कर मुक्ति प्राप्त की । अवन्तिसुकुमाल का आख्यान वर्णित है। शुद्ध आज्ञा के बिना क्रियाफल की शून्यता बताई गई है । गोविन्दवाचक का आख्यान दिया है । ये बौद्ध धर्म के अनुयायी महावादी थे और श्रीगुप्तसूरि से वाद में पराजित होकर इन्होंने जैनधर्म में दीक्षा ग्रहण की थी । ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की कथा दी गई है।
दूसरे भाग में देव द्रव्य का स्वरूप और देव द्रव्य के रक्षण का फल प्रतिपादित किया है। व्रतों को समझाने के लिये सुदर्शन सेठ आदि के उदाहरण दिये हैं। अणुव्रत-पालन में सोमा की कथा दी है। उपकथाओं में झुंटन वणिक की एक सरस कथा दी है, इसमें रूपक द्वारा धर्म का उपदेश दिया गया है। धन सेठ के पुत्र और शंख सेठ की पुत्री दोनों का विवाह हो गया। दुर्भाग्य से धन-सम्पत्ति नष्ट हो जाने से वे दरिद्र हो गये। धन-पुत्र की पत्नी ने अपने पति को उसके मायके जाकर झुंटणक नामका पशु लाने के लिये कहा | उसने कहा कि इस पशु के रोमों से कीमती कम्बल तैयार कर हम लोग अपनी आजीविका चलायेंगे, लेकिन तुम रात-दिन उसे अपने साथ रखना, नहीं तो वह मर जायेगा। अपनी पत्नी के कहने पर धन-पुत्र झुंटणक को अपने श्वसुर के घर से ले आया, लेकिन उसे एक बगीचे में छोड़कर घर में अपनी पत्नी से मिलने चल दिया। पत्नी के पूछने पर उसने उत्तर दिया कि उसे तो वह एक बगीचे में छोड़ आया है। यह सुनकर उसकी पत्नी ने अपना सिर धुन लिया । इस उदाहरण द्वारा यहाँ बताया गया है कि जैसे धन-पुत्र नाम का संसारी जीव अपनी पत्नी के उत्साहपूर्ण वचनों को सुनकर झुंटणक को पाने के लिये अपने श्वसुर के यहाँ गया और उसे अपने घर ले आया, इसी प्रकार मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से यह जीव गुरु के पास उपस्थित होकर धर्म प्राप्त करना चाहता है, और धर्म को वह प्राप्त कर भी लेता है। लेकिन जैसे धन-पुत्र मन्दभाग्य के कारण लोकोपहास के भय से पशु को छोड़ देता है, उसी