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प्राकृत साहित्य का इतिहास -एक दुर्नीति करने से मुझे घर से बाहर निकलना पड़ा। और यदि अब मैं दूसरी दुर्नीति करूंगी तो प्रियतम से मिलना न होगा। श्वसुर के पूछने पर शीलवती ने कहा
"सोरब्भगुणेणं छेय-घरिसणाइणि चंदणं लहइ ।
राग-गुणेणं पावइ खंडण-कढणाई मंजिट्ठा ।। -देखिये, सुगंधि के कारण लोग चंदन को काट कर घिसते हैं और रंग के कारण मजीठ के टुकड़े कर पानी में उबालते हैं।
इसी तरह मेरे गुण भी मेरे शत्रु बन गये, क्योंकि मैं पक्षियों की बोली समझती हूँ| आधी रात के समय गीदड़ी का शब्द सुनकर मुझे पता चला कि एक भुर्दा पानी में बहा जा रहा है
और उसके शरीर पर बहुमूल्य आभूषण हैं। यह जानकर मैं फौरन ही घड़ा लेकर नदी पर पहुँची। मुर्दे को मैंने नदी में से निकाल लिया । उसके आभूषण उतार कर अपने पास रख लिये
और उस मुर्दे को गीदड़ के खाने के लिये उसके सामने फेंक दिया | आभूषणों को घड़े में रख कर मैं अपने घर चली आई। इस प्रकार एक दुर्नीति के कारण मैं इस अवस्था को प्राप्त हुई हूँ। अब यह कौआ कह रहा है कि इस बबूल के पेड़ के नीचे बहुत सा सुवणे गड़ा हुआ है।"
यह सुनकर शीलवती का श्वसुर बड़ा प्रसन्न हुआ, और उसने बबूल के पेड़ के नीचे से गड़ा हुआ धन निकाल लिया । वह अपनी पुत्रवधू की बहुत प्रशंसा करने लगा, और उसे रथ में बैठाकर घर वापिस ले आया। रास्ते में उसने पूछा, "शीलवती, तुम वट वृक्ष की छाया में क्यों नहीं बैठी ?" शीलवती ने उत्तर दिया, “वृक्ष की जड़ में सर्प आदि का भय रहता है, और ऊपर से पक्षी बींद करते हैं, इसलिये दूर बैठना ही अच्छा है ।" फिर उसने शूरवीर कुलपुत्र के बारे में प्रश्न किया। शीलवती ने उत्तर दिया, "ठीक है कि शूरवीर मार खाता है और पीटा जाता है