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कुमारपालप्रतिबोध देर बाद लौटी। उसके श्वसुर को जब इस बात का पता लगा तो उसे शीलवती के चरित्र पर शंका हुई और उसने सोचा कि अब इसे घर में रखना उचित नहीं | यह सोचकर शीलवती को रथ में बैठाकर वह उसके पीहर के लिये रवाना हो गया। रास्ते में एक नदी आई। शीलवती के श्वसुर ने अपनी पतोहू से कहा, "बहू, तुम जूते उतार कर नदी पार करो।" लेकिन उमने जूते नहीं उतारे | श्वसुर ने सोचा, यह बहू बड़ी अविनीता है। आगे चलकर मूंग का एक खेत मिला | श्वसुर ने कहा, "देखो यह खेत कितना अच्छा फल रहा है ! खेत का मालिक इस धन का उपभोग करेगा।" शीलवती ने उत्तर दिया, "बात ठीक है, लेकिन यदि यह खाया न जाये तो।" श्वसुर ने सोचा कि बहू बड़ी ऊटपटांग बात करती है जो इस तरह बोल रही है। आगे चलकर दोनों एक नगर में पहुँचे । वहाँ के लोगों को आनन्द-मन्न देखकर श्वसुर ने कहा, "यह नगर कितना सुन्दर है !” शीलवती ने उत्तर दिया-"ठीक है, लेकिन यदि कोई इसे उजाड़ न दे तो।" कुछ दूरी पर उन्हें एक कुलपुत्र मिला | श्वसुर ने कहा, "यह कितना शूरवीर है !” शीलवती ने उत्तर दिया, “यदि पीट न दिया जाये तो।" श्वसुर ने सोचा, ठीक है वह शूरवीर ही क्या जो पीटा न गया हो। आगे चलकर शीलवती का श्वसुर एक वट वृक्ष के नीचे विश्राम करने बैठ गया | शीलवती दूर ही बैठी रही। उसके श्वसुर ने सोचा, यह सदा उलटा ही काम करती है। थोड़ी दूर चलने पर दोनों एक गाँव में पहुँचे । इस गाँव में शीलवती के मामा ने उसके श्वसुर को भी बुलाया। भोजन करने के पश्चात् उसका श्वसुर रथ के अन्दर लेट गया । शीलवती रथ की छाया में बैठी हुई थी। इतने में बबूल के पेड़ पर बैठे हुए कौवे को बार-बार काँव-काँव करते देखकर शीलवती ने कहा, "अरे, तू काँव-काँव करता हुआ थकता नहीं ?" फिर उसने एक गाथा पढ़ी
एके दुन्नय जे कया तेहिं नीहरिय घरस्स | बीजा दुन्नय जइ करउं तो न मिलउं पियरस्स ।। ३० प्रा० सा०