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प्राकृत साहित्य का इतिहास मैंने हाथी की खाल का एक थैला बनाया । उसे तेल से भर कर गाँव के बाहर एक पेड़ पर टाँग दिया। गाँव में पहुँच कर मैंने अपने लड़के को यह थैला लाने को भेजा | लड़के को थैला दिखाई न दिया, इसलिये वह समूचे पेड़ को ही उखाड़ लाया ।"
खंडपाणा ने रामायण, महाभारत और पुराणों के प्रमाण देकर शश के आख्यान का समर्थन किया।
पाँचवें आख्यान में अर्थशास्त्र की रचना करनेवाली खंडपाणा ने अपना अनुभव सुनाया
"तरुण अवस्था में मैं अत्यंत रूपवती थी। एक बार मैं ऋतु-स्नान करके मंडप में सो रही थी कि मेरे रूपलावण्य से विस्मित होकर पवन ने मेरा उपभोग किया। तुरंत ही मुझे एक पुत्र हुआ, और मुझसे पूछकर वह कहीं चला गया ।
“यदि मेरा उक्त कथन असत्य है तो आप लोग भोजन का प्रबन्ध करें, और यदि सत्य है तो इस संसार में कोई भी स्त्री अनुत्रवती न होनी चाहिये ।”
मूलश्री ने महाभारत आदि के प्रमाण उद्धृत करके खंडपाणा के कथन का समर्थन किया ।'
कुवलयमाला कुवलयमाला के कर्ता दाक्षिण्यचिह्न उद्योतनसूरि हैं । इन्होंने ईसवी सन् ७७६ में जावालिपुर (जालोर) में इस ग्रन्थ को लिखकर समाप्त किया था। यह स्थान जोधपुर के दक्षिण में
१. निशीथसूत्र के भाग्य में इन पाँचों धूर्ती की कथा पहले आ चुकी है।
२. सिंधी सिरीज़ में यह ग्रन्थ डाक्टर ए. एन. उपाध्ये के सम्पादकत्व में दो भागों में प्रकाशित हो रहा है। इसके मुद्रित फर्मे उनकी कृपा से मुझे देखने को मिले हैं। १४वीं सदी के रत्नप्रभसूरि आचार्य ने इस ग्रन्थ के सार रूप संक्षिप्त संस्कृत कुवलयमाला की रचना की है।