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धूर्ताख्यान सारे गाँव के लोग और पशु-पक्षी निकल पड़े। सब लोग राजा को प्रणाम कर के अपने-अपने घर चले गये और मैं यहाँ आपके सामने उपस्थित हूँ।" ___रामायण, महाभारत और पुराणों के पंडित एलाषाढ़ ने इस आख्यान को रामायण आदि से प्रमाणित कर दिया ।
उसके बाद एलाषाढ़ ने अपना अनुभव सुनाना शुरू किया
“युवावस्था में मुझे धन की बड़ी अभिलाषा थी। धन प्राप्त करने की आशा से मैं एक पर्वत पर पहुँचा और वहाँ से रस लेकर आया । इस रस की सहायता से मैंने बहुत-सा धन बनाया। एक बार की बात है, मेरे घर में चोर घुस आये। मैंने धनुष-बाण लेकर उनसे युद्ध किया और बहुत-सों को मार डाला | जो बाकी बचे, उन्होंने मेरा सिर धड़ से अलग कर दिया, और मेरे टुकड़े-टुकड़े कर मुझे बेर की झाड़ी पर डाल, मेरा घर लूट-पाट कर वे वापिस लौट गये। अगले दिन सूर्योदय के समय लोगों ने देखा कि मैं बेर खा रहा हूँ। उन्होंने मुझे जीवित समझ कर मेरे शरीर के टुकड़ों को जोड़ दिया, और मैं आप लोगों के सामने हाजिर हूँ।"
शश ने रामायण, महाभारत और पुराणों की कथायें सुनाकर एलाषाढ़ के आख्यान का समर्थन किया ।
चौथे आख्यान में शश ने अपना अनुभव सुनाया
"गाँव से दूर तक पर्वत के पास मेरा तिल का खेत था । एक बार शरद् ऋतु में मैं वहाँ गया कि इतने में एक हाथी मेरे पीछे लग गया। डर के मारे मैं एक बड़े तिल के झाड़ पर चढ़ गया। हाथी इस झाड़ के चारों तरफ चक्कर मारने लगा। इससे बहुत से तिल नीचे गिर पड़े और हाथी के पैरों के नीचे दबने के कारण वहाँ तेल की एक नदी बह निकली। भूख
और प्यास से पीड़ित हो वह हाथी इस नदी में फंस कर मर गया। मैंने सुख की साँस ली। मैं झाड़ से नीचे उतरा, दस घड़े तेल मैं पी गया और बहुत-सी खल मैंने खा डाली | फिर