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प्राकृत साहित्य का इतिहास गूढचतुर्थगोष्ठी में श्लोक के चतुर्थ पद की पूर्ति की जाती थी। उसका उदाहरण देखिये
सुरयमणस्स रइहरे नियंबभमिरं बहू धुयकरग्गा । तक्खणवुत्तविवाहा गुणचन्द्र ने समस्यापूर्ति करते हुए चौथा पद कहा
वरयस्स करं निवारेइ॥ रतिघर में, अभिनवपरिणीता, सुरत मनवाली वधू अपने नितंबों को घुमाती हुई, उँगलियों को चंचल करती हुई अपने वर के हाथ को रोकती है। ___ आगे चलकर विवाह-उत्सव का वर्णन है जिससे आठवीं सदी की तत्कालीन सामाजिक परिस्थिति का पता चलता है। वर्षाकाल में घनघोर वर्षा होने के कारण उद्यान आदि को नष्ट करती हुई नदी अपनी मर्यादा को लांघ गई थी। लेकिन शरद ऋतु में वही नदी अपनी पूर्व अवस्था को प्राप्त हो गई। इस घटना को देखकर गुणचन्द्र को वैराग्य हो आया और उसने संसार का त्याग कर श्रमणदीक्षा ग्रहण की। ___ अन्तिम नौवें भव में गुणसेन का जीव उज्जयिनी में समरादित्य का और अग्निशर्मा गिरिसेन चांडाल का जन्म धारण करता है। गिरिसेन समरादित्य का वध करके उससे बदला लेना चाहता है, लेकिन असफल रहता है।
समरादित्य अशोक, कामांकुर और ललितांग आदि मित्रों के साथ समय यापन करता है। ये लोग कामशास्त्र की चर्चा करते हैं । कामशास्त्र की आवश्यकता बताते हुए कहा है कि जो लोग कामशास्त्र में उल्लिखित प्रयोगों के ज्ञान से वंचित हैं वे अपनी स्त्री के चित्त का आराधन नहीं कर सकते । कामशास्त्र को धर्म, अर्थ और काम का साधक माना गया है, काम के अभाव में धर्म और अर्थ की सिद्धि नहीं होती।