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भाव
४०८ प्राकृत साहित्य का इतिहास दौड़ा । अरहदत्त ने पूछा-क्या कहीं घास से भी आग बुझ सकती है ? वैद्य ने उत्तर दिया-तो फिर क्रोध आदि से प्रदीप्त अपने शरीर रूपी ईधन से, मुनिधर्म को त्यागकर गृहस्थ धर्म में प्रवेश करने से क्या संसार की आग बुझ सकती है ? वैद्य ने सूअर
और बैल आदि के दृष्टान्त देकर अरहदत्त को प्रबुद्ध किया । ___ सातवें भव में गुणसेन और अग्निशर्मा का जीव सेन और विषेण का जन्म धारण करता है। दोनों चचेरे भाई हैं। विषेण सेन से अनेक बार बदला लेने का यत्न करता है, लेकिन सफल नहीं होता । स्त्री आदि विषयभोगों के संबंध में यहाँ कहा गया है
वारियं खु समये इत्थियादसणं। भणियं च तत्थ-अवि य अंजियव्वाइं तत्तलोहसलायाए अच्छीणि, न दट्ठव्वा य अंगपच्चंगसंठाणेणं इत्थिया, अवि य भक्खियव्वं विसं, न सेवियव्वा विसया, छिन्दियव्वा जीहा, न जंपियव्वमलियं ति ।
-शास्त्रों में स्त्रीदर्शन का निषेध है । कहा है-गर्म-गर्म लोहे की सली से आँखें आंज लेना अच्छा है, लेकिन स्त्रियों के अंग-प्रत्यंगों का देखना अच्छा नहीं | विष का भक्षण करना अच्छा है, लेकिन विषयों का सेवन करना अच्छा नहीं । जीभ काट लेना अच्छा है लेकिन मिथ्याभाषण करना अच्छा नहीं । ___ यहाँ नागदेव नामके पंडरभिक्खू का उल्लेख है जिसने गोरस का त्याग कर दिया था। पियमेलय (प्रियमेलक) नाम के तीर्थ का यहाँ वर्णन किया गया है। आगे चलकर प्रमाद के दोष बताये हैं।
आठवें भव में गुणसेन का जीव गुणचन्द्र का जन्म धारण करता है और अमिशर्मा वानमंतर बनकर उससे बदला लेना चाहता है, लेकिन सफलता नहीं मिलती। यहाँ ७२ कलाओं का
१. विशेषनिशीथचूर्णी (साइक्लोस्टाइल्ड कापी), पृ० १२ में मक्खलिगोशाल के शिष्यों को पंडरभिक्खू कहा गया है।