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३९८ प्राकृत साहित्य का इतिहास चारों ओर चार भयंकर सर्व कुंकार मार रहे हैं और सरकंडे की जड़ में एक भयानक अजगर लिपटा हुआ है। क्षण भर के लिये उसके मन में विचार आया कि जब तक यह सरकंडा है तबतक मेरा जीवन है। इतने में उसने देखा कि दो बड़े-बड़े चूहे-एक सफेद और दूसरा काला-उस सरकंडे की जड़ को काटने में लगे हैं । हाथी इस पुरुष तक नहीं पहुँच सका, इसलिये वह गुस्से में ज़ोर-जोर से वट वृक्ष को हिलाने लगा। इस वृक्ष पर मधुमक्खियों का एक छत्ता लगा हुआ था। इस छत्ते की मक्खियाँ उस पुरुष के शरीर में लिपट कर उसे काटने लगीं। साथ ही छत्ते में से मधु का एक बिन्दु इस पुरुष के माथे पर टपक कर उसके मुँह में प्रवेश कर रहा था और वह पुरुष इसके रस का आस्वादन करने में मग्न था। इस बिन्दु के लोभ से ग्रस्त हुआ वह पुरुष अपनी भयंकर संकटापन्न परिस्थिति को भूल गया था। इस उदाहरण के द्वारा यह बताया गया है कि संसार रूपी अटवी में भ्रमण करते हुए जीव को राक्षसी रूपी वृद्धावस्था और हाथीरूपी मृत्यु का भय बना रहता है । वट का वृक्ष मोक्ष है, जहाँ मरणरूपी हाथी का भय नहीं है। मनुष्य-जन्म कुँआ है, चार सर्प चार कषाय हैं, सरकंडा जीवन है, सफेद
और काले चूहे शुक्ल और कृष्ण पक्ष हैं, मधुमक्खियाँ अनेक प्रकार की व्याधियाँ हैं, अजगर नरक है और मधु की बूंदें संसार के विषयभोग हैं। तात्पर्य यह कि ऐसी हालत में संकटग्रस्त मनुष्य को विषयभोगों की इच्छा नहीं करनी चाहिये ।' . आगे चलकर वैराग्योत्पादक एक दूसरे दृश्य का वर्णन है। एक साँप ने किसी मेंढक को पकड़ रक्खा था, एक कुरल पक्षी इस साँप को पकड़ कर खींच रहा था और इस कुरल पक्षी को
१. भारत के बाहर भी यह कथा पाई जाती है। ई० कुह ने महाभारत, स्त्रीपर्व (अध्याय ५-६) तथा ब्राह्मण, जैन, बौद्ध, मुसलमान और यहूदी कथाओं के साथ इसकी तुलना की है। देखिये जैकोबी, परिशिष्टपर्व, पृष्ठ २२ फुटनोट, कलकत्ता, १८९१ ।