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समराइञ्चकहा
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धणियं पिवासाभिभूओ म्हि । ता निहालेहि एयं जिण्णकूवं किमेत्थ उदगं अस्थि, नत्थि त्ति ? तओ मए गहियपाहेयपोट्टलेणं
चेव निहालिओ कूवो । एत्थंतरम्मि य सुविसत्थहिययस्स लोयस्स विय मच्चू मम समीवमणहगो। सहसा पक्खित्तो तम्मि अहमणहगेण, पडिओ य उदगमझे। नियत्तो य सो तओ विभागाओ।
-इस बीच में सूर्य अस्ताचल में छिप गया, और संध्या हो गई। अणहग ने सोचा-"मेरे हाथ में धन है, जंगल में कोई है नहीं, पाताल के समान गंभीर कुँए के पास पहुँच गये हैं, और अपराधरूपी छिद्रों को ढक देनेवाला अंधकार फैल गया है। ऐसी हालत में अपने साथी को इस कुँए में ढकेल कर, मैं यहाँ से लौट जाऊँगा।" यह सोचकर उसने मुझ से कहा, "हे सार्थवाह के पुत्र ! मुझे बहुत प्यास लगी है। जरा इस पुराने कुए में झाँककर तो देखो इसमें जल है या नहीं ?" तब खाने की पोटली हाथ में लिये-लिये ही मैंने कुँए में झाँका | इस बीच में जैसे विश्वस्त हृदय वाले लोगों के पास मृत्यु आ पहुँचती है, वैसे ही अणहग मेरे पास आ पहुँचा, और उसने एकदम मुझे कुँए में ढकेल दिया । मैं कुँए में गिर पड़ा | वह वहाँ से लौट गया। ___ यहाँ धार्मिक आख्यानों के प्रसंग में कुँए में लटकते हुए पुरुष का दृष्टांत दिया गया है। कोई दरिद्र पुरुष परदेश जाते हुए किसी भयानक अटवी में पहुँचा । इतने में उसने देखा कि एक जंगली हाथी उसका पीछा कर रहा है। उसके पीछे हाथी भागा हुआ आ रहा था, और सामने एक दुष्ट राक्षसी हाथ में तलवार लिये खड़ी थी | उसकी समझ में न आया कि वह क्या करे । इतने में उसे वट का एक विशाल वृक्ष दिखाई पड़ा । वह दौड़कर वृक्ष के पास पहुँचा, लेकिन उसके ऊपर चढ़ न सका। इस वृक्ष के पास तृणों से आच्छदित एक कुँआ था | अपनी जान बचाने के लिये वह कुँए में कूद पड़ा| वह कुँए की दिवाल पर उगे हुए एक सरकंडे के ऊपर गिरा। उसने देखा, दिवाल के