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________________ तरंगवइकहा ३७७ वैकालिक चूर्णी (३, पृष्ठ १०६) और जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के विशेषावश्यकभाष्य (गाथा १५०८) में भी तरंगवती का उल्लेख मिलता है। पादलिप्त सातवाहनवंशी राजा हाल की विद्वत्समा के एक सुप्रतिष्ठित कवि माने जाते थे। स्वयं हाल एक प्रसिद्ध कवि थे, उन्होंने गाथासप्तशती में गुणाढ्य और पादलिप्त आदि प्राकृत के अनेक कवियों की रचनाओं का संग्रह किया है । सुप्रसिद्ध गुणाढ्य भी हाल की सभा में मौजूद थे। जैसे गुणाढ्य ने पैशाची में बृहत्कथा की रचना की, वैसे ही पादलिप्त ने प्राकृत में तरंगवतीकथा लिखी। उद्योतनसूरि की कुवलयमाला में सातवाहन के साथ पादलिप्त का उल्लेख है; पादलिप्त की तरंगवतीकथा का भी यहाँ नाम मिलता है। प्रभावकचरित में पादलिप्तसूरि के ऊपर एक प्रबंध है जिसके अनुसार ये कवि कोशल के निवासी थे, इनके पिता का नाम फुल्ल और माता का प्रतिमा था। बाल्य अवस्था में जैन दीक्षा ग्रहण कर इन्होंने मथुरा, पाटलिपुत्र, लाट, सौराष्ट्र, शत्रुजय आदि स्थानों में भ्रमण किया था। कवि धनपाल ने अपनी तिलकमंजरी में तरंगवती की उपमा प्रसन्न और गंभीर पथवाली पुनीत गंगा से दी है । लक्ष्मणगणि (ईसवी सन् ११४५) ने अपने सुपासनाहचरिय में भी इस कथा की प्रशंसा की है। दुर्भाग्य से बहुत प्राचीन काल से ही यह अद्भुत और सुंदर कृति नष्ट हो गई है। प्रोफेसर लॉयमन ने इस का समय ईसवी सन् की दूसरी-तीसरी शताब्दी स्वीकार किया है। तरंगलोला . तरवती का संक्षिप्तरूप तरंगलोला के रूप में प्रसिद्ध है जो तरंगवतीकथा के लगभग १००० वर्ष पश्चात् तैयार किया गया । इसके कर्ता वीरभद्र आचार्य के शिष्य नेमिचन्द्रगणि हैं जिन्होंने यश नामक अपने शिष्य के लिये १६४२ गाथाओं में इस ग्रंथ
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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