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१६ प्राकृत साहित्य का इतिहास है कि खरोष्ठी धम्मपद' का मूल रूप भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश में ही लिखा गया | लिपि के आधार पर इसका समय ईसवी सन् २०० माना गया है। ___खरोष्ठी के लेख चीनी तुर्किस्तान में भी मिले हैं जिनका अनुसंधान औरल स्टाइन ने किया है। इन लेखों की भाषा का मूल स्थान पेशावर के आसपास पश्चिमोत्तर प्रदेश माना जाता है। इनमें राजा की ओर से जिलाधीशों को आदेश, क्रय-विक्रयसंबंधी पत्र आदि उपलब्ध होते हैं। इन लेखों की प्राकृत निया प्राकृत नाम से कही गई है। इस पर ईरानी, तोखारी और मंगोली भाषाओं का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है। ये लेख ईसवी सन् की लगभग तीसरी शताब्दी में लिखे गये हैं |
प्रस्तुत ग्रन्थ में हमें मध्ययुगीन प्राचीन भारतीय आर्यभाषाओं की आरंभ-कालीन प्राकृत के अन्तर्गत पालि अथवा अशोक के शिलालेखों की प्राकृत का विवेचन अपेक्षित नहीं है। हम उसके बाद की प्राकृतों का ही अध्ययन यहाँ करना चाहते हैं जो जैन आगमों की अर्धमागधी से आरंभ होती हैं।
अर्धमागधी जैसे बौद्ध त्रिपिटक की भाषा को पालि नाम दिया गया है वैसे ही जैन आगमों की भाषा को अर्धमागधी कहा जाता है। अर्धमागधी को आर्ष (ऋषियों की भाषा) भी कहा गया है। हेमचन्द्र ने अपने प्राकृतव्याकरण (१.३) में बताया है कि उनके व्याकरण के सब नियम आर्ष भाषा के लिये लागू नहीं होते क्योंकि उसमें बहुत से अपवाद हैं (आर्षे हि सर्वे विधयो
१. ये लेख बोयेर, रैपसन और सेनार नाम के तीन विद्वानों द्वारा संपादित होकर सन् १९२० में क्लरेण्डन प्रेस, आक्सफोर्ड से छपे हैं। इनका अंग्रेजी अनुवाद बरो के द्वारा रायल एशियाटिक सोसायटी की जेम्स जी० फरलोंग सीरीज़ में सन् १९४० में लंदन से प्रकाशित हुआ है।