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________________ भारतेतरमांकृत का संग्रह मिलता है । यह भाषा अपने शुद्ध साहित्यिक रूप में बढ़ते हुए प्रभाव के नीचे दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण में वृद्धि को प्राप्त हुई। दक्षिण-पश्चिम की अशोकी प्राकृत से इसकी काफी समानता है | मध्ययुगीन भारतीय आर्यभाषाओं के इस आरंभिक काल में प्रियदर्शी अशोक के शिलालेखों और सिक्कों पर खुदी हुई बोलियों का भी. अन्तर्भाव होता है । ये लेख ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों में भारत में और भारत के बाहर लंका में उपलब्ध हुए हैं, जो संस्कृत में न होकर केवल प्राकृत में ही पाये जाते हैं। सम्राट अशोक के बाद भी स्तंभों आदि के ऊपर ८०० वर्ष तक इस प्रकार के लेख उत्कीर्ण होते रहे | भारतेतर प्राकृत • भारतेतर प्राकृत खरोष्ठी लिपि में लिखे हुए प्राकृत धम्मपद' का स्थान महत्त्वपूर्ण है। इसमें १२ परिच्छेद हैं जिनमें २३२ गाथाओं में बुद्ध-उपदेश का संग्रह है। इसकी भाषा पश्चिमोत्तर प्रदेश की बोलियों से मिलती-जुलती है। इनसे अनुमान होता । १. एमिले सेनार ने इसके कुछ अवशेषों का संग्रह सन् १८९७ में प्रकाशित किया था। उसके पश्चात् बरुआ और मित्र ने युनिवर्सिटी ऑव कलकत्ता की ओर से सन् १९२१ में नया संस्करण छपवाया । पालि धम्मपद के साथ प्राकृत धम्मपद की तुलना की जा सकती हैप्राकृत- य ज वषशत जतु अगि परियरे वने । चिरेन सपितेलेन दिवरात्र अतद्रितो । एक जि भवितत्मन मुहुत विव पुअए समेव पुयन पेभ य जि बषशत हुत ॥ पालि- यो च वस्ससतं जन्तु अग्गिं परिचरे वने . एकं च भावितत्तानम् मुहुत्तं अपि पूजये सा येव पूजना सेय्यो यंचे वस्ससतं हुतम् । पृष्ठ ३५।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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