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________________ ३५२ प्राकृत साहित्य का इतिहास कुछ लोग महानिशीथ सूत्र की प्रामाणिकता में सन्देह करते हैं, इसलिये आठवें द्वार में किसी पूर्व आचार्य द्वारा रचित उवहाणपइट्ठापंचासय नाम का प्रकरण उद्धत है। यहाँ महानिशीथ की प्रामाणिकता का समर्थन किया गया है। तत्पश्चात् प्रौषधविधि, प्रतिक्रमणविधि, तपोविधि, नंदिरचनाविधि, लोचकरणविधि, उपयोगविधि, आदिमअटनविधि, उपस्थापनाविधि, अनध्यायविधि, स्वाध्यायप्रस्थापनविधि, योगनिक्षेपणविधि आदि का वर्णन है। योगनिक्षेपणविधि में कालिक और उत्कालिक के भेदों का प्रतिपादन है । योगविधि में दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, दशा-कल्प-व्यवहार, भगवती, नायाधम्मकहा, उवासग, अंतगड, अणुत्तरोववाइय, विपाक, दृष्टिवाद (व्युच्छिन्न) आदि आगमों के विषय का वर्णन है | वाचनाविधि में आगमों की वाचना करने का उल्लेख है। आगम आदि का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् साधु उपाध्याय और आचार्य की तथा साध्वी प्रवर्तिनी और महत्तरा की पदवी को प्राप्त होती है। तत्पश्चात् अनशनविधि, महापारिष्ठापनिकाविधि (शरीर का अन्त्य संस्कार करने की विधि ), प्रायश्चित्तविधि, प्रतिष्ठाविधि, आदि का वर्णन है । प्रतिष्ठाविधि संस्कृत में है, यहाँ जिनबिंबप्रतिष्ठा, ध्वजारोप, कूर्मप्रतिष्ठा, यंत्रप्रतिष्ठा, और स्थापनाचार्यप्रतिष्ठा का वर्णन है। मुद्राविधि भी संस्कृत में है। इसमें भिन्न-भिन्न मुद्राओं का उल्लेख है । इसके पश्चात् ६४ योगनियों के नामों का उल्लेख है। फिर तीर्थयात्राविधि तिथिविधि और अंगविज्जासिद्धिविही बताई गई है। अंगविज्जा की यहाँ साधनाविधि प्रतिपादित की गई है। इसके अलावा जिनवल्लभसूरि की पोसहविहिपयरण, दाणविहि, प्रत्याख्यानविचारणा, नंदिविधि आदि कितने ही लघुग्रंथ इस विषय पर लिखे गये। १. देखिये जैन ग्रंथावलि, पृ० १४४-१५४ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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