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३५० प्राकृत साहित्य का इतिहास
(छ) सामाचारी सामाचारी अर्थात् साधुओं का आचार-विचार, इस पर भी अनेक ग्रन्थ प्राकृत में लिखे गये हैं। किसी पूर्वाचार्य विरचित आयारविहि अथवा सामाचारीप्रकरण में सम्यक्त्व, व्रत, प्रतिमा, तप, प्रव्रज्या, योगविधि, आदि का विवेचन है। तिलकाचार्य की सामाचारी' में साधुओं के आचार-विचार से संबंध रखनेवाले योग, तपस्या, लोच, उपस्थापना, वसति, कालग्रहणविधि आदि विषयों का प्रतिपादन है | धनेश्वरसूरि के शिष्य श्रीचन्द्रसूरि ने भी सुबोधसामाचारी की रचना की है। भावदेवसूरि ने श्रीयतिदिनचों का संकलन किया है। किसी चिरंतन आचार्य ने पंचसूत्र की रचना की है, इस पर हरिभद्र ने टीका लिखी है। हरिभद्रसूरि के पंचवस्तुकसंग्रह में प्रव्रज्या, प्रतिदिनक्रिया, उपस्थापना, अनुज्ञा और सल्लेखना के विवेचनपूर्वक साधुओं के आचार का वर्णन है। हरिभद्रसूरि की दूसरी
१. विशेष के लिये देखिये जैन ग्रंथावलि, श्रीजैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स, मुंबई द्वारा प्रकाशित, पृ० १५५-५७ ।
२. जैन आत्मानन्द सभा की ओर से सन् १९१९ में प्रकाशित ।
३. डाह्याभाई मोकमचन्द, अहमदाबाद द्वारा वि० सं० १९९० में प्रकाशित । ___४. देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रंथमाला की ओर से सन् १९२४ में प्रकाशित ।
५. ऋषभदेव केशरीमल संस्था, रतलाम की ओर से सन् १९३६ में में प्रकाशित ।
६. लब्धिसूरीश्वर जैनग्रंथमाला द्वारा सन् १९३९ में प्रकाशित ।
७. देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रंथमाला की ओर से सन् १९२७ में प्रकाशित ।