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________________ श्रुतस्कन्ध ३२३ है। पण्डित आशाधर जी ने सागारधर्मामृत की टीका में वसुनन्दि का उल्लेख बड़े आदरपूर्वक करते हुए उनके श्रावकाचार की गाथाओं को उद्धृत किया है। इसमें कुल मिलाकर ५४६ गाथायें हैं जिनमें श्रावकों के आचार का वर्णन है। आरम्भ में सम्यग्दर्शन का स्वरूप प्रतिपादन करते हुए जीवों के भेद-प्रभेद बताये गये हैं। अजीव के वर्णन में स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणुओं के स्वरूप का प्रतिपादन है । द्यूत, मद्य, मांस, वेश्या, शिकार, चोरी और परदारसेवन नाम के सात व्यसनों का प्ररूपण है । व्रतप्रतिमा के अन्तर्गत १२ व्रतों का निर्देश है । दान के फल का विस्तृत वर्णन है। पञ्चमी, रोहिणी, अश्विनी, सौख्य-सम्पत्ति, नन्दीश्वरपंक्ति और विमानपंक्ति नामक व्रतों का विधान है। पूजा का स्वरूप बताया गया है। श्रुतदेवी की स्थापना का विधान और प्रतिष्ठाविधि का विस्तृत वर्णन है । पूजन के फल का वर्णन किया गया है। श्रुतस्कन्ध श्रुतस्कन्ध' के कर्ता ब्रह्मचारी हेमचन्द्र हैं । उन्होंने तैलङ्ग के कुण्डनगर के उद्यान के किसी जिनालय में बैठकर इस ग्रंथ की रचना की थी। हेमचन्द्र रामनन्दि सैद्धांतिक के शिष्य थे। इससे अधिक ग्रंथकर्ता के विषय में और कुछ पता नहीं चलता। श्रुतस्कन्ध में ६४ गाथायें हैं। यहाँ द्वादशांग श्रुत का परिचय कराते हुए द्वादशांग के सकलश्रुत के अक्षरों की संख्या बताई है। सामायिक, स्तुति, वंदन, प्रतिक्रमण, वैनयिक, कृतिकर्म, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्प कल्पाकल्प, महाकल्प, पुंडरीक, महापुंडरीक और निशीथिका आदि की गणना अंगबाह्य श्रुत में की है। चतुर्थकाल में चार वर्षों में साढ़े तीन मास अवशेष रहने पर कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन वीर भगवान् ने सिद्धि १. माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला में तत्वानुशासनादिसंग्रह के अन्तर्गत वि० सं० १९७७ में बम्बई से प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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