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गोम्मटसार
३१३ दूसरा नाम पंचसंग्रह, गोम्मटसंग्रह या गोम्मटसंग्रहसूत्र भी है। इसे प्रथम सिद्धांतग्रंथ या प्रथम श्रुतस्कंध भी कहा गया है। गोम्मटसार के अतिरिक्त नेमिचन्द्र ने त्रिलोकसार, लब्धिसार और क्षपणासार की भी रचना की है। प्रायः धवल, महाधवल और जयधवल आदि टीकाग्रन्थों के आधार से ही ये ग्रन्थ लिखे गये हैं। गोम्मटसार पर नेमिचन्द्र के शिष्य चामुण्डराय ने कर्णाटक में वृत्ति लिखी थी, इसका नेमिचन्द्र ने अवलोकन किया था। बाद में इस वृत्ति के आधार से केशववर्णी ने संस्कृत में टीका लिखी। फिर अभयचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती ने मन्दप्रबोधिनी नामकी संस्कृत टीका की रचना की। उपर्युक्त दोनों संस्कृत टीकाओं के आधार से पण्डित टोडरमल जी ने सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामकी हिन्दी टीका लिखी।
गोम्मटसार दो भागों में विभक्त है-एक जीवकांड', दूसरा कर्मकांड । जीवकांड में महाकर्मप्राभूत के सिद्धांतसम्बन्धी जीवस्थान, क्षुद्रबंध, बंधस्वामी, वेदनाखंड, और वर्गणाखंड इन पाँच विषयों का वर्णन है। यहाँ गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, १४ मार्गणा और उपयोग इन २० अधिकारों में जीव
की अनेक अवस्थाओं का प्रतिपादन किया गया है। कर्मकांड में 'प्रकृतिसमुत्कीर्तन, बंधोदयसत्व, सत्वस्थानभंग, त्रिचूलिका, स्थानसमुत्कीर्तन, प्रत्यय, भावचूलिका, त्रिकरणचूलिका और कर्मस्थितिरचना नामक नौ अधिकारों में कर्मों की अवस्थाओं का वर्णन किया गया है।
१. रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला बंबई से सन् १९२७ में प्रकाशित ।
२. उपर्युक्त शास्त्रमाला में संवत् १९८५ में प्रकाशित । कर्मकांड पर दिलाराम द्वारा फारसी भाषा में कोई टीका लिखे जाने का उल्लेख मिलता है (कैटलाग ऑक्सफोर्ड, १८६४)। यह सूचना मुझे शांतिनिकेतन (बंगाल ) के फारसी के प्रोफेसर स्वर्गीय जियाउद्दीन द्वारा प्राप्त हुई थी।