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प्राकृत साहित्य का इतिहास कत्तिगेयाणुवेक्खा ( कार्तिकेयानुप्रेक्षा ) कार्तिकेयानुप्रेक्षा' के कर्ता स्वामी कार्तिकेय अथवा कुमार हैं । ये ईसवी सन की आठवीं शताब्दी के विद्वान् माने जाते हैं। कुन्दकुन्दकृत बारस अणुओक्खा और प्रस्तुत ग्रंथ में विषय और भाषा-शैली की दृष्टि से बहुत कुछ समानता देखने में आती है । इस ग्रंथ में ४८६ गाथायें हैं जिनमें अध्रुव, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचिरव, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म नाम की १२ अनुप्रेक्षाओं का विस्तार से वर्णन है । अन्त में १२ तपों का प्रतिपादन है।
गोम्मटसार गोम्मटसार के कर्ता देशीयगण के नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती है जो गंगवंशीय राजा राचमल्ल के प्रधानमन्त्री और सेनापति चामुण्डराय के समकालीन थे। चामुण्डराय ने श्रवणबेलगुल की सुप्रसिद्ध बाहुबलि या गोम्मट (बाहुबलि) स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी, इसलिये ये गोम्मटराय भी कहे जाते थे । नेमिचन्द्र विक्रम की ११वी शताब्दी के विद्वान् थे, और सिद्धांतशास्त्र के अद्वितीय पण्डित होने के कारण सिद्धांतचक्रवर्ती कहे जाते थे। नेमिचन्द्र ने लिखा है कि जैसे कोई चक्रवर्ती अपने चक्र द्वारा पृथ्वी के छह खण्डों को निर्विघ्नरूप से अपने वश में कर लेता है, वैसे ही मैंने अपने मतिरूपी चक्रद्वारा छह खण्ड के सिद्धांत का सम्यक रूप से साधन किया है। नेमिचन्द्र ने अपने ग्रंथ की प्रशस्ति में वीरनन्दि आचार्य का स्मरण किया है। धवल आदि महासिद्धांत ग्रंथों के आधार से उन्होंने गोम्मटसार की रचना की है। गोम्मटसार का
१. स्वर्गीय पंडित जयचन्द जी की भाषाटीका सहित गांधी नाथारंग जी द्वारा ईसवी सन् १९०४ में बंबई से प्रकाशित । यह ग्रन्थ पाटनी दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला में भी पं० महेंद्रकुमार जी जैन पाटनी के हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित हुआ है।