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मूलाचार
३०९ का वर्णन है। वस्त्र, अजिन, वल्कल, और पत्र आदि द्वारा शरीर के असंवृत करने को अचेलत्व कहा है | बृहत्प्रत्याख्यानसंस्तव अधिकार में क्षपक को सर्व पापों का त्याग करके मरण समय में दर्शनाराधना आदि चार आराधनाओं में स्थिर रहने और क्षुधादि परीषहों को जीतकर निष्कषाय होने का उपदेश है। यहाँ महेन्द्रदत्त द्वारा एक ही दिन में मिथिला नगरी में कनकलता, नागलता, विद्युल्लता और कुन्दलता नामकी स्त्रियों, तथा सागरक, वल्लभक, कुलदत्त और वर्धमान नामक पुरुषों के वध करने का उल्लेख है।' संक्षेपप्रत्याख्यानाधिकार में सिंह, व्याघ्र आदि द्वारा आकस्मिक मरण उपस्थित होने पर सर्व पापों, कषाय और आहार आदि का त्याग कर समता भाव से प्राण त्याग करने का उपदेश है। समाचाराधिकार में दस प्रकार के आचारों का वर्णन है। तरुण मुनि को तरुण संयती के साथ संभाषण आदि करने का निषेध है। तीन, पाँच अथवा सात की संख्या में परस्पर संरक्षण का भाव मन में धारण करती हुई आर्यिकाओं को भिक्षागमन का उपदेश दिया गया है। आर्यिकाओं को आचार्य से पाँच हाथ दूर बैठकर और उपाध्याय से छह हाथ दूर बैठकर उनकी वंदना करनी चाहिये। पंचाचाराधिकार में दर्शनाचार, ज्ञानाचार आदि पाँच आचार और उसके भेदों का विस्तार से वर्णन है। यहाँ लौकिक मूढ़ता में कौटिल्य, आसुरक्ष, महाभारत और रामायण
१. टीकाकार ने इन कथानकों को भागम से अवगत करने के लिये
२. इस विषय के विस्तार के लिए देखिये बृहत्कल्पभाष्य ३. ४१०६ आदि।
३. व्यवहारभाष्य (१, पृष्ठ १३२) में माठर और कौंडिन्य की दण्डनीति के साथ आसुरुक्ख का उल्लेख है। गोम्मटसार (जीवकांड, पृ० ११७ ) में भी इसका नाम आया है । ललितविस्तर (पृष्ठ १५६) में इसे आसुर्य नाम से कहा गया है।