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________________ २९६ प्राकृत साहित्य का इतिहास अप्रतिचक्रेश्वरी, पुरुषदत्ता, ज्वालामालिनी, कूष्मांडी आदि के नाम गिनाये हैं | आठ प्रकार की ऋद्धियाँ बताई हैं। चतुर्दशपूर्वधारी, दशपूर्वधारी, एकादश अंगधारी और आचारांगधारियों का वर्णन है । क्वचित् सूक्तियाँ भी दिखाई दे जाती हैं अंघो णिवडइ कूवे बहिरो ण सुणेदि साधु उवदेसं । पेच्छतो णिसुणतो णिरए जं पडइ तं चोज्जं ॥ -अंधा कूप में गिर जाता है और बहरा साधु का उपदेश नहीं सुनता, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं । आश्चर्य यही है कि यह जीव देखता और सुनता हुआ भी नरक में जा पड़ता है। ___ पाँचवें महाधिकार में ३२१ गाथायें हैं, इसमें गद्यभाग ही अधिक है। तिर्यग्लोक में असंख्यात द्वीप-समुद्र हैं । यहाँ जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखंड, कालोदसमुद्र, पुष्करवरद्वीप, नन्दीश्वरद्वीप, कुण्डलवरद्वीप, स्वयंभूरमणद्वीप आदि के विस्तार, क्षेत्रफल आदि का वर्णन है। छठे महाधिकार में १०३ गाथायें हैं जिनमें १७ अन्तराधिकारों के द्वारा व्यन्तर देवों के निवासक्षेत्र, उनके भेद, चिह्न, कुलभेद, नाम, इन्द्र, आयु, आहार आदि का प्ररूपण है। सातवें महाधिकार में ६१६ गाथायें हैं। इसमें ज्योतिष देवों के निवासक्षेत्र, उनके भेद, संख्या, विन्यास, परिमाण, उत्सेध, अवधिज्ञान, शक्ति आदि का विस्तार से प्रतिपादन है। आठवें महाधिकार में ७०३ गाथायें हैं जिनमें वैमानिक देवों के निवासक्षेत्र, विन्यास, भेद, नाम, सीमा, विमानसंख्या, इन्द्रविभूति, गुणस्थान आदि,सम्यक्त्वग्रहण के कारण आदि का वर्णन किया गया है । नौवें महाधिकार में सिद्धों के क्षेत्र, उनकी संख्या, अवगाहना और सुख का प्ररूपण है। लोकविभाग तिलोयपण्णत्ति के कर्ता यतिवृषभ ने लोकविभाग का अनेक जगह उल्लेख किया है, लेकिन यह ग्रंथ कब और किसके द्वारा रचा गया इसका कुछ पता नहीं लगता। सिंहसूरि के संस्कृत
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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