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तिलोयपण्णत्ति
२९५ नादगृह और लतागृह आदि का वर्णन है। अश्वत्थ (पीपल ), सप्तवण, शाल्मलि, जंबू, वेतस, कदंब, प्रियंगु, शिरीष, पलाश, और राजद्रुम नाम के दस चैत्यवृक्षों का उल्लेख है। चौथा महाधिकार सब से बड़ा है, उसमें २६६१ गाथाओं में मनुष्यलोक का स्वरूप प्रतिपादित है। यहाँ विजया दक्षिण और उत्तर श्रेणियों में अवस्थित नगरियों का उल्लेख है। आठ मंगलद्रव्यों में गार (झारी), कलश, दर्पण, व्यंजन, ध्वजा, छत्र, चमर और सुप्रतिष्ठ (एक पात्र ) के नाम गिनाये गये हैं। भोगभूमि में स्थित दश कल्पवृक्षों का वर्णन है। स्त्री और पुरुषों के आभूषणों का उल्लेख है। भोगभूमि में उत्पन्न होनेवाले युगल नर-नारियों का वर्णन है। चौबीस तीर्थंकरों की जन्मभूमि, नक्षत्र, और उनकी आयु आदि का उल्लेख है। नेमि, मल्लि, महावीर, वासुपूज्य और पार्श्वनाथ द्वारा कुमार अवस्था में, तथा शेष तीर्थंकरों द्वारा राज्य के अन्त में तप स्वीकार करने का उल्लेख है।' महावीर भगवान के निर्वाण प्राप्त करने पर गौतमस्वामी को, गौतम के निर्वाण प्राप्त करने पर सुधर्मस्वामी को, और सुधर्मस्वामी के निर्वाण प्राप्त करने पर जम्बूस्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। मुक्तिगामियों में अन्तिम श्रीधर, चारण ऋषियों में अन्तिम सुपार्श्वचन्द्र, प्रज्ञाश्रमणों में अन्तिम वनयश, अवधिज्ञानियों में अन्तिम श्रीनामक और मुकुटधरों में जिनदीक्षाधारकों में अन्तिम चन्द्रगुप्त का उल्लेख है। सामान्य भूमि का प्रमाण, सोपानों का प्रमाण, विन्यास, वीथि, धूलिशाल, चैत्य-प्रासादभूमियाँ, नृत्यशाला, मानस्तंभ, वेदी आदि ३१ अधिकारों में समवसरण का वर्णन किया है। तीर्थंकरों के अतिशयों का प्रतिपादन है। यक्षों में गोवदन, महायक्ष, त्रिमुख, यक्षेश्वर, तुंबुरव, मातंग, विजय, अजित, ब्रह्म, आदि तथा यक्षिणियों में चक्रेश्वरी, रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रशृंखला, वज्रांकुशा, १. जेमी मल्ली वीरो कुमारकालम्मि वासुपुजो य ।
पासो वि य गहिदतवा सेसजिणा रजचरमम्मि ॥