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________________ २८६ प्राकृत साहित्य का इतिहास घोरतप, घोरपराक्रम, घोरगुण, घोरगुणब्रह्मचारी, आमाँषधिप्राप्त, खेलौषधिप्राप्त, जल्लौषधिप्राप्त, विष्टौषधिप्राप्त, सौषधिप्राप्त, मनोबली, वचनबली, कायबली, क्षीरस्रवी, सर्पिस्रवी, मधुस्रवी, अमृतस्रवी,अक्षीणमहानस,सर्वसिद्धायतन और वर्धमान बुद्ध ऋषि को नमस्कार किया है । टीकाकार ने अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण, छिन्न, भौम, स्वप्न और अन्तरिक्ष इन आठ महानिमित्तों के लक्षण समझाए हैं। यहाँ सूत्रकर्ता ने नाम, स्थापना, द्रव्य, गणन, ग्रंथ, करण और भाव नामक सात कृतियों की संक्षिप्त प्ररूपणा की है। वेदना महाधिकार में १६ अनुयोगद्वार हैं, जिनमें से (१) वेदनानिक्षेप, (२) वेदनानयविभाषणता, (३) वेदनानामविधान और (४) वेदनाद्रव्यविधान नाम के चार अनुयोगद्वारों का प्रतिपादन षट्खंडागम की दसवीं पुस्तक में किया गया है। घटखंडागम की ग्यारहवीं पुस्तक का नाम वेदना-क्षेत्रविधानवेदनाकाल विधान है। वेदना महाधिकार के अन्तर्गत वेदनानिक्षेप आदि १६अनुयोगद्वारों में से ४ अनुयोगद्वारों का प्रतिपादन १० वी पुस्तक में किया जा चुका है। प्रस्तुत पुस्तक में वेदनाक्षेत्रविधान और वेदनाकालविधान नामक दो अनुयोगद्वारों का निरूपण है। वेदनाक्षेत्रविधान में पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व का प्रतिपादन है। वेदनाद्रव्यविधान और क्षेत्रविधान के समान वेदनाकालविधान में भी पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व नाम के तीन अनुयोगद्वार हैं। इसके अन्त में दो चूलिकायें हैं । वेदनाक्षेत्रविधान में 8 और वेदनाकालविधान में २७६ सूत्र हैं। ___षट्खंडागम की बारहवीं पुस्तक में वेदनाखंड नाम का चौथा खंड समाप्त हो जाता है। वेदना अनुयोगद्वार के १६ अधिकारों में से निम्नलिखित दस अधिकारों का प्ररूपण प्रस्तुत भाग में किया गया है-वेदनाभावविधान, वेदनाप्रत्ययविधान, वेदना
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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