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________________ २७८ प्राकृत साहित्य का इतिहास आचार्यों के अलग अलग व्याख्यान मौजूद थे। उन्होंने अनेक स्थलों पर उन दोनों के मतभेदों का उल्लेख किया है। आगे चलकर इस ग्रन्थ का विशेष परिचय दिया जायेगा। षट्खंडागम का परिचय षट्खंडागम की प्रथम पुस्तक के जीवस्थान के अन्तर्गत सत्प्ररूपण में १७७ सूत्र हैं जिसमें चौदह गुणस्थानों और मार्गणाओं का प्ररूपण किया है। प्रथम सूत्र में पंच परमेष्ठियों को नमस्कार किया है, फिर मार्गणाओं का प्रयोजन बताया है। तत्पश्चात् आठ अनुयोगद्वारों से प्रथम सत्प्ररूपण का विवेचन आरम्भ होता है। चौदह गुणस्थानों के स्वरूप का प्रतिपादन है | फिर मार्गणाओं का विवेचन किया गया है । टीकाकार वीरसेन ने दक्षिणापथवासी आचार्यों के पास पत्र भेजकर वहाँ से मुनियों को बुलवाने का वर्णन यहाँ किया है तेण वि सोरठ-विसयगिरिणयरपट्टणचंदगुहाठिएण अटुंगमहाणिमित्तपारएण गन्थवोच्छेदो होहदित्ति जादभएण-पवयणवच्छलेण दक्षिणावहाइरियाणंमहिमाए मिलियाणं लेहो पेसिदो। लेहहियधरसेणवयणमवधारिय तेहि वि आइरिएहि बे साहू गहणधारणसमत्था धवलामलबहुविहविणयविहूसियंगा सीलमालाहरा गुरुपेसणासणतित्ता देसकुलजाइसुद्धा सयलकलापारया तिक्खुत्ता बुच्छियाइरिया अन्धविसयवेण्णायणादो पेसिदा । -सौराष्ट्र देश के गिरिनगर नामक नगर की चन्द्रगुफा में रहनेवाले अष्टांग महानिमित्त के पारगामी, और प्रवचनवत्सल धरसेनाचार्य ने अङ्गश्रुत के विच्छेद हो जाने के भय से महिमा नगरी में सम्मिलित दक्षिणापथ के आचार्यों के पास एक लेख १. यह ग्रंथ सेठ शिताबराय लक्ष्मीचन्द्र जैन साहित्योद्धारक फंड, अमरावती से डाक्टर हीरालाल जैन द्वारा सम्पादित सोलह भागों में सन् १९३९-१९५८ में प्रकाशित हुआ है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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