________________
२५८ प्राकृत साहित्य का इतिहास
"क्या तुम महिला भी रखते हो?" "अपने पुत्रों को कैसे अकेला छोड़ दूँ ।” "तो तुम्हारे पुत्र भी हैं ?" "मैं तो सेंध भी लगाता हूँ।" "अरे, सेंध भी लगाते हो ?" "दासीपुत्र फिर क्या करेंगे ?" "अरे तुम दासीपुत्र हो ?"
"नहीं तो कुलपुत्र बुद्ध-शासन में कहाँ से प्रव्रज्या ग्रहण करने चले ?"
एक लौकिक कथा पढ़िये
एगो मणूसो तउसाणं भरिएण सगडेण नगरं पविसइ । सो पविसंतो धुत्तेण भण्णइ-जो य तउसाणं सगडं खाएजा तस्स तुमं किं देसि ? ताहे सागडिएण सो धुत्तो भणिओ-तस्साहं तं मोदगं देमि जो नगरदारेणं न निप्फिडइ । धुत्तेण भण्णइ-ताहे एयं तउससगडं खायामि | तुमं पुण मोदगं देज्जासि जो नगरदारेण न निस्सरइ। पच्छा सागडिएण अब्भुवगए धुत्तेण सक्खिणो कया। सगडं अधिहितो, तेसिं तउसाणं एक्केकाउ खंड खंडं अवणेत्ता पच्छा तं सागडियं मोदगं मग्गइ। ताहे सागडिओ भणइ-इमे तउसा न खइता तुमे | धुत्तेण भणइ-जइ न खइया । तउसे अग्घवेहि तुमं । अग्धविएसु कइया आगया। पासन्ति खंडिया तउसा। ताहे कइया भणंति-को एते खतिए किणत्ति ? ततो कारणे ववहारे जाओ । खत्तिय त्ति जितो सागडितो। ताहे धुत्तेण मोदगं मग्गिज्जइ। अञ्चइओ सागडिओ। जुत्तिकए
ओलग्गिता । ते तुट्ठा पुच्छति । तेसिं जहावतं सव्वं कहइ | एवं कहिए तेहिं उत्तरं सिक्खाविओ जहा तुम खड्डुलगं मोयगं नगरदारे ठावेत्ता भण-एस मोदगो न नीति णगरदारेण गिण्हति । जितो धुत्तो।
--एक आदमी ककड़ियों से अपनी गाड़ी भर कर उन्हें किसी नगर में बेचने के लिए चला। किसी धूर्त ने उसे देख