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________________ २४८ प्राकृत साहित्य का इतिहास माता, पिता आदि शब्दों की व्युत्पत्तियाँ देखिये मातयति मन्यते वाऽसौ माता, मिमीते मिनोति वा पुत्रधर्मानिति माता | पाति विभर्ति वा पुत्रमिति पिता | स्नेहाधिकत्वात् माता पूर्व, स्नेहेति श्रवन्ति वा तामिति स्नुषा | विभर्ति भयते वासौ भार्या । पुनातीति पुत्रः । गच्छतीति गौः। अश्नुते अश्नाति वा अध्वानमित्यश्वः । मद्यते मन्यते वा तमलंकारमिति मणिः । पश्यतीति पशुः ।। प्राकृत के साथ संस्कृत का भी सम्मिश्रण हुआ है एगो पसवालो प्रतिदिन-प्रतिदिनं मध्याह्नगते रवौ अजासु महान्यग्रोधतरुसमाश्रितासु तत्थुत्ताणओ निवन्नो वे णुविदलेण अजोद्गीर्णकोलास्थिभिः तस्य वटस्य छिद्रीकुर्वन् तिष्ठति । एवं स वटपादपः प्रायसः छिद्रपत्रीकृतः । अण्णदा य तत्थेगो राइयपुत्तो दाइयधाडितो तं छायं समस्सितो। पेच्छते य तस्स वडपादवस्स सव्वाणि पत्ताणि छिदिताणि । तेण सो पसुपालतो पुच्छितो केणेताणि पत्ताणि छिद्दीकताणि ? तेण भण्णति-मया एतानि क्रीड़ापूर्व छिद्रितानि, तेण सो बहुणा दव्वजातेण विलोभेउं भण्णति-सक्केसि जस्स अहं भणामि तस्स अच्छीणि छिद्देउं ? तेण भण्णति-वुडढब्भासत्थो होउ तो सक्केमि । तेण गरं णीतो। रायमग्गसंनिकिट्ठे घरे ठवितो। तस्स य रायपुत्तस्स राया स तेण मग्गेण अस्सवाहणियाए णेजति । तेण भण्णति-एयस्स अच्छीणि फोडेहि । तेण गोलियधणुएण तस्सऽहिगच्छमाणस्स दोवि अच्छीणि फोडिताणि | पच्छा सो रायपुत्तो (राया) जातो। __-प्रतिदिन मध्याह्न के समय, जब बकरियाँ एक महान वट के वृक्ष के पत्ते खाने लगतीं, तो बांस की लकड़ी हाथ में लेकर ऊपर मुँह किये बैठा हुआ कोई ग्वाला बकरियों द्वारा उगली हुई बेरों की गुठलियों से उस वृक्ष के पत्तों में छेद करता रहता । इस तरह गुठलियाँ मार-मार कर उसने सारे वृक्ष के पत्तों को छलनी कर दिया । एक दिन राजा द्वारा निष्कासित कोई राज
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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