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आचारांगचूर्णी
२३५ हिरण्णगारादी। गामो विज्जसण्णिविट्ठो दोहिं गम्मति जलेणावि थलेणावि दोणमुहं जहा भरुयच्छं तामलित्ती।
आगे चल कर विविध वस्त्रों और शाला आदि के लक्षण । समझाये गये हैं।
निम्नलिखित कथा से चूर्णियों की लेखन-शैली का पता चलता है
एक्कम्मि गामे सुइवादी। तस्स गामस्स एगस्स गिहे केणइ च्छिप्पति । तो चउसट्ठीए मट्टियाहि स पहाति | अण्णदा यस्स गिहे बलदो मतो। कम्मारएहिं णिवेइयं । तेण भणियं-सद्धिं नीणेध, तं च ठाणं पाणिएणं धोवह । निप्फेडिए चंडाला उवहिता विगिंचियं कुज्ज । तेहिं कम्मयरेहिं सुइवादी पुच्छिओ-'चंडालाण दिजउ ?' तेण वुत्तं-'मा, किंखु किंखु किंखुत्ति भणति । विकिंचतु सयं । एवमेव मंसं दमयगाणं देह। चम्मेण वइयाउ वलेह, सिंगाणि उच्छवाडमझे कीरहि त्ति उज्झ पि खत्तं भविस्सइ, अद्विहि वि धूमो कज्जिहिति तउसीण, हारुणा सत्थकंडाणं भविस्सइ । . -किसी गाँव में एक शुचिवादी रहता था। वह किसी एक घर से भिक्षा मांगकर खाता, और चौंसठ बार मिट्टी से स्नान करता था। एक बार की बात है कि नौकरों ने आकर निवेदन किया कि बैल मर गया है। घर के मालिक ने उन्हें आदेश दिया कि बैल को शीघ्र ही बाहर ले जाओ, और उस स्थान को पानी से धो डालो। बैल की खाल लेने के लिए चाण्डाल आ गये। नौकरों ने शुचिवादी से पूछा कि क्या बैल चांडालों को दे दें ? शुचिवादी ने कहा-"तुम लोग स्वयं ही उसकी खाल निकाल लो, मांस भिखारियों को दे दो, चमड़े की बाड़ बना लो, सींगों को ईख में जलाकर उनसे खाद बना लो, हड्डियों का धुंआ करके उसे बाड़े की ककड़ियों में दो और उसके स्नायुओं से बाण बना लो।"