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बृहत्कल्पभाष्य
૨૨૨ -जो कल करना है उसे आज ही कर डालना चाहिए, क्योंकि क्रूर यम आता हुआ दिखाई नहीं देता । धर्म का आचरण करने के लिए शीघ्रता करो। प्रत्येक मुहूर्त में अनेक विन्न उपस्थित होते हैं, अतएव अपराह्न काल की भी प्रतीक्षा न करो।
पाँचवें भाग में चतुर्थ उद्देश के १-३४ और पंचम उद्देश के १-४२ सूत्र हैं। इन सूत्रों पर ४८७७-६०५६ गाथाओं का भाष्य है। इनमें अनुदातिक, पारांतिक, अनवस्थाप्य, प्रव्राजनादि, वाचना, संज्ञाप्य, ग्लान, अनेषणीय, कल्पस्थित, अकल्पस्थित, गणान्तरोपसंपत् , विष्वग्भवन, अधिकरण, परिहारिक, महानदी, उपाश्रयविधि , ब्रह्मापाय, अधिकरण, संस्तृतनिर्विचिकित्सा, उद्गार, आहारविधि, पाकनविधि,ब्रह्मरक्षा, मोक, परिवासित और व्यवहार का विवेचन है। हस्तमैथुन, मैथुन, अथवा रात्रिभोजन का सेवन करने से गुरु प्रायश्चित का विधान किया है । ___ छठे भाग में छठे उद्देश के १-२० सूत्र हैं जिन पर ६०६०६४६० गाथाओं का भाष्य है। इनमें वचन, प्रस्तार, कंटकादि उद्धरण, दुर्ग, क्षिप्तचित्त आदि, परिमंथ और कल्पस्थिति सूत्रों का विवेचन है । मथुरा में देवनिर्मित स्तूप का उल्लेख है। यदि कोई वणिक् बहुत सा धन जहाज में भर कर जलयात्रा करे और जहाज के डूब जाने से उसका सारा धन नष्ट हो जाये, तो वह अपने ऋण को लौटाने के लिए बाध्य नहीं है, इसे वणिकन्याय कहा गया है। जीर्ण, खंडित अथवा अल्प वस्त्र धारण करनेवाले निग्रंथ भी अचेलक कहे जाते हैं। आठ प्रकार के राजपिंड का उल्लेख है।
जीतकल्पभाष्य । जीतकल्पभाग्य के ऊपर जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का स्वोपज्ञ भाष्य है । यह भाष्य वस्तुतः बृहत्कल्पभाष्य, व्यवहारभाष्य और पिंडनियुक्ति आदि ग्रन्थों की गाथाओं का संग्रह है। इसमें पाँच ज्ञान, प्रायश्चित्तस्थान, भक्तपरिज्ञा की विधि,