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२२० प्राकृत साहित्य का इतिहास रोहिणेय चोर आदि की कथायें वर्णित हैं। आर्यसमुद्र और आर्यमंगु का उल्लेख है। कुशिष्य को महाकल्पश्रुत पढ़ाने का निषेध है। विप्लव, महामारी, दुर्भिक्ष, चोर, धन-धान्य और कोष की हानि तथा बलवान प्रत्यंत राजा का उपद्रव-ये बातें राज्य के लिये हानिकारक कही गई हैं। राजा, युवराज, महत्तर, अमात्य, कुमार और रूपयक्ष के लक्षण बताये गये हैं। तप, सत्त्व, सूत्र, एकत्व और बल इन पाँच भावनाओं का विवेचन है।
बृहत्कल्पभाष्य - संघदासगणि क्षमाश्रमण इस भाग्य के रचयिता हैं । बृहत्कल्प की भाष्यपीठिका में ८०५ गाथायें हैं जिनमें ज्ञानपंचक, सम्यक्त्व, सूत्रपरिषद्, स्थंडिलभूमि, पात्रलेप, गोचयों, वसति की रक्षा, वस्त्रग्रहण, अवग्रह, विहार आदि का वर्णन है। स्त्रियों के लिये भूयावाद (दृष्टिवाद ) पढ़ने का निषेध है। श्रावकभार्या, साप्तपदिक, कोंकणदारक, नकुल, कमलामेला, शंब का साहस और श्रेणिक के क्रोध की कथाओं का वर्णन है। अपने शिष्यों के बोध के लिये आर्यकालक के उज्जैनी से सुवर्णभूमि ( बरमा) के लिये प्रस्थान करने का उल्लेख है। अभिनव नगर बसाने के लिये भूमि आदि की परीक्षा करके, भूमि खोदकर, ईटों की नींव रखकर, ईटें चिनकर, और पीठक बनाकर प्रासाद का निर्माण । करना चाहिये । शिष्यों को उपदेश देने के लिये ब्राह्मणों की कथा दी है
अन्नो दुझिहि कल्लं, निरत्थयं किं बहामि से चारिं । चउचरणगवी य मया, अवण्णहाणी य मरुयाणं॥ माणे हुन्ज अवन्नो, गोवज्मा मा पुणो य न दलिज्जा । वयमवि दोभामो पुण, अगुग्गहो अन्नदूढे वि ॥
१. जो भंभीय, आसुरुक्ख, माठर के नीतिशास्त्र और कौण्डिन्य की दंडनीति में कुशल हो और सत्य का पक्ष लेता हो उसे रूपयक्ष कहा . है। मिलिन्दपण्ह (पृ० ३४४) में रूपदक्ख नाम मिलता है।