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प्राकृत साहित्य का इतिहास -रात्रि में सुन्दर चांदनी छिटकी हुई है, वामा (स्त्री ) का मार्ग निरुद्ध है, मदन (कामदेव ) दुर्धर्ष है, शरद् ऋतु शोभित हो रही है, फिर भी समागम होने का कोई उपाय नहीं ।
परस्पर-अनुरक्त स्त्री और पुरुष की आकृतियों का वर्णन भाष्यकार ने किया है
काणच्छि रोमहरिसो, वेवहु सेओ वि दिट्ठमुहराओ। णीसासजुता य कधा, वियंभियं पुरिसआयारा ॥
-कानी आँख से देखना, रोमांचित हो जाना, शरीर में कंप होना, पसीना छूटने लगना, मुँह पर लाली दिखाई देने लगना, बार-बार निश्वास और जंभाई लेना-ये स्त्री में अनुरक्त पुरुष के लक्षण हैं। स्त्री की दशा देखिये
सकडक्खपेहणं बाल-सुंवणं कण्ण-णास-कंडुयणं । छण्णंगदसणं घट्टणाणि उवगृहणं बाले । णीयल्लयदुच्चरिताणुकित्तणं तस्सुहीण य पसंसा । पायंगुडेण मही-विलेहणं णिठुभणपुव्वं ॥
-सकटाक्ष नयनों से देखना, बालों को सँवारना, कान और नाक को खुजलाना, गुह्य अंग को दिखाना, घर्षण और आलिंगन, तथा अपने प्रिय के समक्ष अपने दुश्चरितों का बखान करना, ' उसके हीन गुणों की प्रशंसा करना, पैर के अंगूठे से जमीन खोदना और खखारना-ये पुरुष के प्रति आसक्त स्त्री के लक्षण समझने चाहिये।
निशीथभाष्य में आचार-विचार और रीति-रिवाजसंबंधी बहुत से विषयों का उल्लेख है। उदाहरण के लिये, पुलिंद आदि अनार्य जंगल में जाते हुए साधु को आर्य समझ कर मार डालते थे। विविध प्रकार का माल-असबाब लेकर सार्थवाह अपने सार्थ के साथ बनिज-व्यापार के लिये दूर-दूर देशों में भ्रमण करते थे । संखडी (भोज) धूमधाम से मनाई जाती थी। कवडग (कौड़ी), कागणी, दीनार और केवडिय आदि