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१९० प्राकृत साहित्य का इतिहास उत्तरज्झयण, दसाओ, कप्प, ववहार, निसीह, महानिसीह, इसिभासिय, जंबुद्दीवपन्नत्ति, दीवसागरपन्नत्ति, चंदपन्नत्ति, खुड्डियाविमाणपविभत्ति, महल्लिआविमाणपविभत्ति, अंगचूलिका, वग्गचूलिका, विवाहचूलिका, अरुणोववाय, वरुणोववाय, गरुलोववाय, धरणोक्वाय, 'वेसमणोववाय, वेलंधरोववाय, देविंदोववाय, उठाणसुय, समुट्ठाणसुय, नागपरिआवणिआओ, निरयावलियाओ, कप्पिआओ, कप्पवडिंसियाओ, पुफियाओ, पुप्फचूलियाओ, वहिदसाओ आदि | उत्कालिक के निम्नलिखित भेद हैं:दसवेआलिय, कप्पाकप्पिय, चुल्लकप्पसुअ, महाकप्पसुअ, उववाइअ, रायपसेणिअ, जीवाभिगम, पण्णवणा, महापण्णवणा, पमायप्पमाय, नंदी, अनुयोगदार, देविदत्थअ, तंदुलवेआलिअ, चंदाविज्झय, सूरपण्णत्ति, पोरिसिमंडल, मंडलपवेस, विज्जाचरणविणिच्छअ, गणिविज्जा,माणविभत्ती, मरणविभत्ती, आयविसोही, वीयरागसुअ, संलेहणासुअ, विहारकप्प, चरणविही, आउरपच्चक्खाण, महापच्क्खाण आदि ।
___ अनुयोगदार (अनुयोगद्वार ) यह आर्यरक्षित द्वारा रचित माना जाता है | विषय और भाषा की दृष्टि से यह सूत्र काफी अर्वाचीन मालूम होता है।' . इस पर भी जिनदासगणि महत्तर की चूर्णी तथा हरिभद्र और अभयदेव के शिष्य मलधारि हेमचन्द्र की टीकायें हैं। प्रश्नोत्तर की शैली में इसमें प्रमाण-पल्योपम, सागरोपम, संख्यात, असंख्यात और अनंत के प्रकार, तथा निक्षेप, अनुगम और नय का प्ररूपण है। नाम के दस प्रकार, नव काव्य-रस और उनके उदाहरण, मिथ्याशास्त्र, स्वरों के नाम, स्थान, उनके लक्षण, ग्राम, मूर्च्छना आदि का वर्णन किया है। कुप्रावचनिकों में चरक,
... १. हरिभद्रसूरि की टीका सहित सन् १९२८ में रतलाम से और मलधारी हेमचन्द्र की टीका सहित सन् १९३६ में भावनगर से प्रकाशित ।