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मन्दी
१८९ रामायण, भीमासुरक्ख', कौटिल्य', घोटकमुख', सगडमहिआ, कप्पसिअ, नागसुहुम, कनकसत्तरि', वइसेसिय (वैशेषिक), बुद्धवचन, त्रैराशिक, कापिलिक, लोकायत, षष्ठितंत्र, माठर; पुराण, व्याकरण, भागवत, पातंजलि, पुस्सदेवय, लेख, गणित, शकुनरुत, नाटक आदि तथा ७२ कला और सांगोपांग चार वेदों की गणना की गई है। __ नन्दीसूत्र के अनुसार श्रुत के दो भेद हैं :-गमिक श्रुत
और आगमिक श्रुत ! गमिक श्रुत में दृष्टिवाद और आगमिक में कालिक का अन्तर्भाव होता है। अथवा श्रुत के दो भेद किये गये हैं-अंगबाह्य और अंगप्रविष्ट | टीकाकार के अनुसार अंगप्रविष्ट गणधरों द्वारा और अंगबाह्य स्थविरों द्वारा रचे जाते हैं। आचारांग, सूत्रकृतांग आदि के भेद से अंगप्रविष्ट के १२ भेद हैं। अंगबाह्य दो प्रकार का है-आवश्यक और आवश्यकव्यतिरिक्त । आवश्यक सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान के भेद से छह प्रकार का है। आवश्यकव्यतिरिक्त के दो भेद हैं-कालिक (जो दिन और रात्रि की प्रथम और अंतिम पोरिसी में पढ़ा जाता है) और उत्कालिक | कालिक के निम्नलिखित भेद बताये गये हैं
१. व्यवहारभाष्य ( १, पृष्ठ १३२ ) में माठर और कोडिन की दंडनीति के साथ भंभीय और आसुरुक्ख का उल्लेख है। नेमिचन्द्र के गोम्मटसार जीवकांड (३०३, पृष्ठ ११७ ) में आभीय और आसुरुक्ख तथा ललितविस्तर (पृष्ठ १५६) में आंभीय और आसुर्य का नाम आता है । तथा देखिये मूलाचार (५-६१ ) टीका ।
२. सूत्रकृतांगचूर्णी ( पृष्ठ २०८) में चाणक्ककोडिल्ल और बौद्धों के चूलवंस (६४-३) में कोटल्ल का उल्लेख है। •
३. अर्थशास्त्र (पृष्ठ २८२ ) और कामसूत्र (पृष्ठ १८८) में घोटकमुख का उल्लेख है। मज्झिमनिकाय (२, पृष्ठ १५७ आदि) भी देखिये।
४. ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका।