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प्राकृत साहित्य का इतिहास समय उससे बात न करें। जब वह पवित्र स्थान में आकर बैठ जाये तो उसे रोगी का हाल कहें। फिर जो उपचार वह बताये उसे ध्यानपूर्वक सुनें।'
ग्राम में प्रवेश कर साधु लोग स्थान के मालिक (शय्यातर) से पूछकर वसति (ठहरने का स्थान ) में ठहरते हैं। चातुर्मास बीत जाने पर उससे पूछकर अन्यत्र गमन करते हैं। संध्या के समय आचार्य अपने गमन की सूचना देते हैं और चलने के पूर्व शय्यातर के परिवार को धर्म का उपदेश देते हैं। साधु लोग शकुन देखकर गमन करते हैं; रात्रि में गमन नहीं करते; दूसरे स्थान में पहुँचते-पहुँचते यदि रात हो जाये तो जंगली जानवर, चोर, रक्षपाल, बैल, कुत्ते और वेश्या आदि का डर रहता है। ऐसे समय यदि कोई टोके तो कह देना चाहिये कि हम लोग चोर नहीं हैं। वसति में पहुंचने पर यदि चोर का भय हो तो एक साधु वसति के द्वार पर खड़ा रहे और दूसरा मल-मूत्र (कायिकी) का त्याग करे | यहाँ मल-मूत्र त्याग करने की विधि बताई है। कभी कोई विधवा, प्रोषितभर्तृका अथवा रोक कर रक्खी हुई स्त्री साधु को अकेला पाकर घर का द्वार बन्द कर दे, तो यदि साधु स्त्री की इच्छा करता है तो वह संयम से भ्रष्ट हो जाता है। यदि इच्छा नहीं करता तो स्त्री झूठमूठ . उसकी बदनामी उड़ा सकती है। यदि कोई स्त्री उसे जबर्दस्ती पकड़ ले तो साधु को चाहिये कि वह स्त्री को धर्मोपदेश दे । यदि स्त्री फिर भी न छोड़े तो गुरु के समीप जाने का बहाना बनाकर वहाँ से चला जाये। फिर भी सफलता न मिले तो व्रत भंग करने के लिये वह कमरे में चला जाय और उपायान्तर न देख रस्सी आदि से लटक कर प्राणान्त कर ले | .
उपधि का निरूपण करते हुए जिनकल्पियों के निम्नलिखित बारह उपकरण बताये हैं-पात्र, पात्रबन्ध, पात्रस्थापन, पात्र
१. इस वर्णम के लिए देखिये, सुश्रुतसंहिता, (अ० २९, सूत्र २३, पृ० १७५ आदि)।