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उत्तरज्झयण
१७१ ने पाँच महाव्रतों का; पार्श्वनाथ ने सचेल धर्म का प्ररूपण किया है और महावीर ने अचेल धर्म का | इस मतभेद का क्या कारण हो सकता है ? इस पर चर्चा करते हुए गौतम ने बताया है कि कुछ लोगों के लिए धर्म का समझना कठिन होता है, कुछ के लिए धर्म का पालना कठिन होता है और कुछ के लिये धर्म का समझना और पालना दोनों आसान होते हैं, इसलिये अलग-अलग शिष्यों के लिये अलग-अलग रूप से धर्म का प्रतिपादन किया गया है। गौतम ने बताया कि बाह्यलिंग केवल व्यवहार नय से मोक्ष का साधन है, निश्चय नय से तो ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही वास्तविक साधन समझने चाहिये । __यज्ञीय नाम के पच्चीसवें अध्ययन में जयघोष मुनि और विजयघोष ब्राह्मण का संवाद है। जयघोष मुनि को देखकर विजयघोष ने कहा-'हे भिक्षु ! मैं तुझे भिक्षा न दूंगा। यह भोजन वेदों के पारंगत, यज्ञार्थी, ज्योतिषशास्त्र और छह अंगों के ज्ञाता केवल ब्राह्मणों के लिये सुरक्षित है'। यह सुनकर सच्चे ब्राह्मण का लक्षण बताते हुए जयघोष ने कहा
जो लोए बंभणो वुत्तो अग्गी वा महिओ जहा । सदा कुसलसंदिठें, तं वयं बूम माहणं ॥ न वि मुंडिएण समणो, न ऊंकारेण बंभणो । न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण तावसो॥ समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो। नाणेण य मुणी होइ, तवेणं होइ तावसो । कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्सो कम्मुणा होइ, सुद्दो होइ कम्मणा ॥'
-इस लोक में जो अग्नि की तरह पूज्य है, उसे कुशल पुरुष ब्राह्मण कहते हैं। सिर मुंडा लेने से श्रमण नहीं होता, ओंकार का जाप करने से ब्राह्मण नहीं होता, जंगल में रहने से
१. मिलाइये धम्मपद के ब्राह्मणवग्ग तथा सुत्तनिपात, वसलसुत्त २१-२७; सेलसुत्त २१-२२ के साथ ।