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प्राकृत साहित्य का इतिहास
दससुयक्खंध ( दशाश्रुतस्कंध ) दशाश्रुतस्कंध जिसे दसा, आयारदसा अथवा दसासुय भी कहा जाता है, चौथा छेदसूत्र है। कुछ लोग दसा के साथ कप्प को जोड़कर ववहार को अलग मानते हैं, और कुछ दसा को अलग करके कल्प और व्यवहार को एक स्वीकार करते हैं । इससे इस सूत्र की उपयोगिता स्पष्ट है । दशाश्रुतस्कंध के कर्ता भद्रबाहु माने जाते हैं। इस पर नियुक्ति है। नियुक्ति के कर्ता भद्रबाहु छेदसूत्रों के कर्ता भद्रबाहु से भिन्न जान पड़ते हैं । दशाश्रुतस्कंध पर चूर्णी भी है। ब्रह्मर्षि पार्श्वचन्द्रीय ने इस पर वृत्ति लिखी है। - इस ग्रन्थ में दस अध्ययन हैं, जिनमें आठवें और दसवें विभाग को अध्ययन और बाकी को दशा कहा गया है। पहली दशा में असमाधि के बीस स्थान गिनाये हैं। दूसरी दशा में शबल के इक्कीस स्थानों का उल्लेख है। इनमें हस्तकर्म, मैथुन, रात्रिभोजन, राजपिंडग्रहण, एक मास के भीतर एक गण छोड़कर दूसरे गण में चले जाना आदि स्थान मुख्य हैं। तीसरी दशा में आशातना के तेईस प्रकारों का उल्लेख है। जो मुनि इनका सेवन करते हैं वे शबल हो जाते हैं । चौथी दशा में आठ प्रकार की गणिसंपदा बताई गई है-आचारसंपदा, श्रुतसंपदा, शरीरसंपदा, वचनसंपदा, वाचनासंपदा, मतिसंपदा, प्रयोगसंपदा और संग्रहसंपदा | इन संपदाओं का यहाँ विस्तार से वर्णन है। पाँचवीं दशा में चित्तसमाधिस्थान का वर्णन है। इसके धर्मचिन्ता आदि दस भेद बताये हैं। छठी दशा में उपासक की ११ प्रतिमाओं का विवेचन है। आरम्भ में अक्रियावादी, क्रियावादी आदि मिथ्यात्व का प्ररूपण करते हुए उनकी क्रियाओं के फल का वर्णन किया है। काषाय वस्त्र, दातौन, स्नान, मर्दन, विलेपन, शब्द,
१. पंन्यास मणिविजयगणिवरग्रन्थमाला में वि० सं० २०११ में प्रकाशित।