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निसीह
१३५ भूल जाये तो वह जीवनपर्यंत आचार्यपद का अधिकारी नहीं हो सकता। निशीथसूत्र में निर्ग्रन्थ और निम्रन्थिनियों के आचार-विचारसंबंधी उत्सर्ग और अपवादविधि का प्ररूपण करते हुए प्रायश्चित्त आदि का सूक्ष्म विवेचन है । जान पड़ता है प्राचीनकाल से ही निशीथसूत्र के कर्तृत्व के संबंध में मतभेद चला आता है। निशीथ-भाष्यकार के अनुसार चतुर्दश पूर्वधारियों ने इस प्रकल्प की रचना की' और नौवें प्रत्याख्यान नामक पूर्व के आधार पर यह सूत्र लिखा गया। पंचकल्पचूर्णी में भद्रबाहु निशीथ के कर्ता बताये गये हैं। इस सूत्र में २० उद्देशक हैं और प्रत्येक उद्देशक में अनेक सूत्र निबद्ध हैं। सूत्रों के ऊपर नियुक्ति, सूत्र और नियुक्ति के ऊपर संघदासगणि का भाष्य तथा सूत्र, नियुक्ति और भाष्य पर जिनदासमणि महत्तर की सारगर्भित विशेषचूर्णी (विसेसनिसीहचुण्णि) है। निशीथ पर लिखा हुआ बृहद्भाष्य उपलब्ध नहीं है। प्रद्युम्नसूरि के शिष्य ने इस पर अवचूर्णी की भी रचना की है।
पहले उद्देशक में ५८ सूत्र हैं। इन पर ४६७-८१५ गाथाओं का भाष्य है । सर्वप्रथम भिक्षु के लिये हस्तमैथुन (हत्थकम्म)
१. कामं जिणपुव्वधरा, करिसु सोधि तहा वि खलु एण्हिं ।
चोइसपुग्वणिबद्धो, गणपरियही पकप्पधरो ॥ (वही ६६७४) २. प्रत्याख्यान पूर्व में बीस वस्तु (अधिकार)हैं। उनमें तीसरे अधिकार का नाम आचार है, उसमें बीस प्राभृत हैं। बीसवें प्राभूत को लेकर निशीथ की रचना हुई।
३. मुनिपुण्यविजय, बृहत्कल्पभाष्य की प्रस्तावना, पृष्ठ ३। चूर्णीकार जिनदासगणि महत्तर के अनुसार परम पूज्य सुप्रसिद्ध विसाहगणि महत्तर ने अपने शिष्य-प्रशिष्यों के हितार्थ निशीथसत्र की रचना की।
४. विनयपिटक (३, पृष्ठ ११२,११७ ) में भी इसका उल्लेख है।