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जीवाजीवाभिगम : यहाँ कंबोजदेश के घोड़ों; क्षत्रिय, गृहपति, ब्राह्मण और ऋषि नाम की चार परिषद्; कला, शिल्प और धर्म आचार्य नाम के तीन आचार्य शास्त्र, अग्नि, मंत्र और विष द्वारा मारण के उपाय तथा ७२ कलाओं का उल्लेख है।
जीवाजीवाभिगम पक्खिय और नंदीसूत्र में जीवाजीवाभिगम की गणना उक्कालिय सूत्रों में की गई है। इसमें गौतम गणधर और महावीर के प्रश्न-उत्तर के रूप में जीव और अजीव के भेद-प्रभेदों का विस्तृत वर्णन है।'
प्राचीन परंपरा के अनुसार इसमें बीस विभाग थे। मलयगिरि ने इस पर टीका लिखी है। उनके अनुसार इस उपांग में अनेक स्थलों पर वाचनाभेद हैं और बहुत से सूत्र विच्छिन्न हो गये हैं । हरिभद्र और देवसूरि ने इस पर लघु वृत्तियाँ लिखी हैं । इस सूत्र पर एक-एक चूर्णी भी है जो अप्रकाशित है । प्रस्तुत सूत्र में नौ प्रकरण (प्रतिपत्ति) हैं जिनमें २७२ सूत्र हैं। तीसरा प्रकरण सबसे बड़ा है जिसमें देवों तथा द्वीप और सागरों का विस्तृत वर्णन है । इस प्रकरण में रत्न, अस्त्र, धातु, मद्य, पात्र,
१. मलयगिरि की टीका सहित देवचन्द लालभाई, निर्णयसागर, बम्बई से सन् १९१९ में प्रकाशित । ।
२. यहाँ चन्द्रप्रभा (चन्द्रमा के समान रंगवाली), मणिशलाका, 'वरसीधु, वरवारुणी, फलनिर्याससार (फलों के रस से तैयार की हुई), पत्रनिर्याससार, पुष्पनिर्याससार, चोयनिर्याससार, बहुत द्रव्यों को मिला कर तैयार की हुई, संध्या के समय तैयार हो जानेवाली, मधु, मेरक, रिष्ठ नामक रत्न के समान वर्णवाली, दुग्धजाति (पीने में दूध के समान लगनेवाली ), प्रसन्ना, नेल्लक, शतायु (सौ बार शुद्ध करने पर भी जैसी की तैसी रहनेवाली), खजूरसार, मृद्वीकासार (द्राक्षासव), कापिशायन, सुपक और क्षोदरस (ईख के रस को पकाकर तैयार की हुई ) नामक मद्यों के प्रकार बताये गये हैं। रामायण और महाभारत