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रायपसेणइय
१०९ प्रसंग में यहाँ पुस्तकसंबंधी डोर, गाँठ, दावात (लिप्पासन), ढक्कन, श्याही, लेखनी और पुढे (कंबिया) का उल्लेख है।
दूसरे भाग में राजा प्रदेशी और कुमारश्रमण केशी का सरस संवाद आता है। सेयविया नगरी में राजा प्रदेशी नाम का कोई राजा राज्य करता था | उसके सारथी का नाम चित्त था । चित्त शाम, दाम, दण्ड और भेद में कुशल था, इसलिये प्रदेशी उसे बहुत मानता था। एक बार चित्त सारथी श्रावस्ती के राजा जितशत्रु के पास कोई भेंट लेकर गया | वहाँ उसने पार्श्वनाथ के अनुयायी केशी नामक कुमारश्रमण के दर्शन किये। केशीकुमार ने चातुर्याम धर्म (प्राणातिपातविरमण, मृषावादविरमण, अदत्तादानविरमण और बहिद्धादानविरमण) का उपदेश दिया । कुछ समय बाद जब चित्त सारथी सेयविया लौटने लगा तो उसने केशीकुमार को सेयविया पधारने का निमंत्रण दिया ।
समय बीतने पर केशीकुमार विहार करते हुए श्रावस्ती से सेयविया पधारे । अवसर पाकर चित्त सारथी किसी बहाने से राजा प्रदेशी को उनके दर्शन के लिये लिवा ले गया । राजा प्रदेशी ने जीव और शरीर को एक सिद्ध करने के लिये बहुत-सी युक्तियाँ दी, केशीकुमार ने उनका निराकरण कर जीव और शरीर को भिन्न सिद्ध किया
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी
"पएसी, से जहानामए कूडागारसाला सिया दुहओलित्ता गुत्ता, गुत्तदुआरा निवायगंभीरा । अहं णं केइ पुरिसे भेरिं च दण्डं च गहाय कूडागारसालाए अन्तो अन्तो अगुपविसइ । अणुपवि
स्थापत्य कला में चित्रित हैं । वायों के सम्बन्ध में काफी गड़बड़ी मालूम होती है। मूलपाठ में इनकी संख्या ४९ कही गई है, लेकिन वास्तविक संख्या ५९ है। बहुत से वाद्यों का स्वरूप अस्पष्ट है। टीकाकार के अनुसार नाट्यविधियों का उल्लेख चौदह पूर्वो के अन्तर्गत नाट्यविधि नामक प्राभृत में मिलता है, लेकिन यह प्राभृत विच्छिन्न है।