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श्राचरण करने वाले कहे जाते हैं। उन्हें मुक्ति प्राप्त होना अशक्य है क्योंकि बहुत समय तक ज्ञान और. चारित्र के आचरण के सिवाय जाति या कुल किसी को बचा नहीं सकते। [८-१६] .
कोई भिक्षु भले ही भाषा पर अधिकार रखने वाला प्रतिभा- . वान् पंडित हो या प्रज्ञावान् विचारक हो पर यदि वह अपनी बुद्धि अथवा विभूति के कारण मद में आकर दूसरे का तिरस्कार करे तो वह प्रज्ञावान् होने पर भी समाधि को प्राप्त नहीं कर सकता । इस लिये, भिक्षु प्रजामद, तपोमद, गोत्रमद और धनमद को न करे। जो मद नहीं करता, वह पंडित और उत्तम सत्त्ववाला (सात्त्विक) . हैं। गोत्र श्रादि मदों से पर रहने वाले महर्पि ही गोत्र से रहित परम गति को प्राप्त होते हैं। [ १३.१६]
__ जो भिक्षु अपने सर्वस्व का त्याग करके जो कुछ, रूखा सूखा अाहार मिले उसी पर रहने वाला होने पर भी यदि मानप्रिय और.. श्रात्म-प्रशंसा की कामना रखनेवाला हो तो उसका सन्यास उसकी आजीविका ही है। ऐसा भिक्षु ज्ञान प्राप्त किये बिना ही बार बार इस . संसार को प्राप्त करता है [१२]
कितने ही भिक्षु झगडालू , कलहप्रिय, उग्र और क्रोधी होते हैं। वे झगड़ों में से कभी शांति प्राप्त नहीं कर सकते । भिक्षुको तो गुरु की आज्ञानुसार चलने वाला, लज्जाशील, अपने कर्तव्य से तत्पर, निष्कपट, मधुर द्यौर मितभापी, पुरुषार्थी, गम्भीर, सरल याचरण वाला और शान्त होना चाहिये। धर्म में स्थिर होने की इच्छा रखने वाला तो त्याज्य और पाप जनक प्रवृत्तियों से दूर ही रहता है। [५-७.१६]