SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ P प्रस्तावना प्रस्तुत ग्रन्थ जैन-नागमों में प्रसिद्ध प्राचीन ग्रन्थ, सूत्रकृतांग का 'छायानुवाद' है । दर्पण में गिरनेवाली 'छाया' तो मूल वस्तु का यथावत् प्रतिबिम्ब होती है, किन्तु यहां 'छाया' से मूल का संक्षिप्त दर्शन कराने का उद्देश्य है। पाठकों के प्रति ग्रन्थ के सम्पादक का यह उद्देश्य सर्वथा स्तुत्य है. क्योंकि ऐसे प्राचीन ग्रन्धों के जिस दर्णन में श्राधुनिक युग के रुचि नहीं, और जिसके पठन-पाठन से कोई लाभ विशेष होना संभव नहीं, उसको छोडकर केवल वह भाग जो पाठक को रुचिकर हो, ज्ञानवर्धक हो और लाभदायक हो प्रकट किया जाना चाहिये । ऐसी पद्धति को अपना कर ग्रन्थ को उपयोगी बनाया है, और इस प्रकार पाठकों की अच्छी सेवा की है। 'सूत्रकृतांग : जैन-पागमों में एक प्राचीन और अमूल्य ग्रन्थ है। इसमें “ नवदीक्षित श्रमणों को संयम में स्थिर करने के ..लिये और उनकी मलिन मति को शुद्ध करने के लिये जैन सिद्धान्तों का वर्णन है," इसके सिवाय भी, आधुनिक काल के पाठक को, जिसे अपने देश का प्राचीन बौद्विकज्ञान जानने की उत्सुकता हो, जैन ऐवं अजैन 'दूसरे वादियों के सिद्धान्त ' जानने को मिलते हैं। उसी प्रकार किसी को सांसारिक जीवन से उच्च आध्यात्मिक जीवन प्राप्त करने की इच्छा हो तो उसे भी जैन--अजैन के क्षुद्र भेद से सर्वथा विलंग
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy