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विभिन्न वादों की चची
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क्षयोपशम किया जा सकता हैं। इस प्रकार सुख दुःख . का
मूल देव और पुरुषार्थ दोनों ही हैं। __ इन सब लोगों की दशा किस के समान है? जैसे शिकारी के भय से भागा हुआ हरिण निर्भय स्थान में भी भय खाता है और भयावह में निडर रहता है; जहां पानी होता है, वहां से . कूद जाने या उसे पार करने के बदले, उस को देखे बिना ही उस में गिर पडता है, और इस प्रकार खुद के अज्ञान से फंसता है। ऐसे ही ये मिथ्या वादी लोक हैं, सच्चे धर्म-ज्ञान से वे घबरा कर भागते हैं और जो भयस्थान है, ऐसी अनेक प्रवृतियों में वे निर्भय हो विचरते हैं। प्रवृत्तियों के प्रेरक क्रोध मान, माया और लोभ का त्याग करके मनुष्य कर्मबन्ध से छूट सकता है। परन्तु ये मूर्ख वादी उस हरिण की भांति, यह तक नहीं जानते और इस संसारजाल में फंसकर वारम्बार जन्म लेते मरते हैं। [६-१३ ]
कितने ही ब्राह्मण और श्रमण ऐसे भी हैं, जो यही मान बैठे . हैं कि, "ज्ञान तो हमारे पास ही है, दूसरे कुछ जानते ही नहीं।"
परन्तु इन का ज्ञान है क्या ? परम्परागत तत्त्वों की बातें वे तोते की तरह बोलते हैं; बस, यही है। इसी पर ये अज्ञानी तर्क लडाते हैं। ऐसा करने से ज्ञान थोडे ही प्राप्त हो जाता है। जो खुद अपंग (अयोग्य) हैं, वे दूसरे को क्या दे सकते हैं। न तो वे दूसरे के पास से सत्य ज्ञान ही प्राप्त करते हैं और न घमंड के कारण अपना ज्ञान पूरा मानना ही छोडते हैं। अपने कल्पित सत्यों की प्रशंसा और दूसरों के वचनों की निंदा करना ये लोग नहीं छोडतेः । इस के परिणाम. में पिंजरे के पक्षी की भांति ये बन्दी बने रहते हैं । [१४-२३] - इसके अतिरिक्त एक प्राचीन मत-क्रियावाद भी जानने योग्य है। कर्म-बन्धन का सत्य ज्ञान नहीं बताने वाले इस वाद को मानने वाले