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... विभिन्न वादों की चर्चा
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आत्मा ही नहीं; विश्व को एक आत्मरूप माननेवालों के लिये तो एक आत्मा के सिवाय संसार में दूसरी कोई नहीं; .
आत्मा को पुण्य-पाप का जब अकर्ता मान लिया तो फिर ।। . कोई सुखी, कोई दुःखी ऐसा भेद ही न रहा । इस प्रकार : . ऐसे वादों को मानने वाले प्रवृत्तिमय संसार में फंसे रहते हैं।
. दूसरे कुछ भ्रमात्मक वादों को कहता हूं। कोई कहते हैं कि "छः तत्व हैं; पंच महाभूत और एक आत्मा । ये सब शाश्वत नित्य हैं। इनमें से एक भी नष्ट नहीं होता। इस प्रकार जो वस्तु है ही नहीं वह क्यों कर उत्पन्न हो सकती है ? इस प्रकार सब पदार्थ सर्वथा नित्य है।" [१५-१६ ] और कुछ सूर्ख ऐसा कहते हैं कि, "क्षण-क्षण उत्पन्न और नष्ट होनेवाले रूपादि पांच स्कन्धों के सिवाय कोई (आत्मा जैसी) वस्तु ही नहीं। तब यह सहेतुक है या अहेतुक; सबसे भिन्न है या एकरूप है, ऐसा कोई विवाद ही नहीं रहता। पृथ्वी, जल, तेज और वायु में इन चार धातुओं (धारक-पोषक तत्वों) का रूप (शरीर और संसार) बना हुआ है।" [१७-१८] ::
टिप्पणी-बौद्ध आत्मा जैसी कोई स्थायी, अविनाशी ' वस्तु नहीं
मानते । क्षण-क्षण बदलने वाले पांच स्कन्धों को मानते हैं। (१) रूप-स्कन्धः-पृथ्वी, जल, तेज और वायु-चार महाभूत । (२) वेदना-स्कन्धः-सुख, दुख, और उपेक्षायुक्त वेदनाएं । (३) संज्ञा-स्कन्धः-एक पदार्थ से निर्मित विभिन्न वस्तुएं । यया घड़ा, मकान इंट. आदि की विभिन्नता की निदेशक शक्ति (2) संस्कार-स्कन्धः-प्रेम, द्वेष, अभिरुचि अादि