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________________ ... व्याख्यान-छट्ठा ...: तुम पाप किस तरह करते. हो? सर्व विरति की दीक्षा का मतलव है साधुपना। यह साधुयना सिंह जैसे मनुष्य ही ले सकते हैं । कायरों (वायला) का वहां काम नहीं है। 6. अति उन पाप का फल इस भवमें ही मिल जाता . इसलिये पाप करते हुये खव डरो । करना ही पडे तो रोते रोते करो। . अगर पत्नी से धर्म मिला हो तो पत्नीका भी उपकार नहीं भूलना चाहिये । श्रीपाल महाराजा मयणा सुन्दरी से धर्म प्राप्त होने से सयणा सुन्दरी को वारं वार याद करते थे। उपकारो का उपकार कभी भी भूलना नहीं चाहिये। .... धर्म करने के समय भी जो दुःख आता है व पूर्व भवमें वांधे हुये पाप का फल है एला विचार करने से धर्म को बदनाम करने का मन नहीं होता है। . .. अनेक भवकी आराधना के बिना मोक्ष नहीं मिलता है । श्री महावीर भगवान समकित प्राप्त होने के बाद ...... सत्ताईस. भवमें मोक्ष गये। खवर है कि नहीं ? समकिती आत्मा मरण को महोत्सव मानता है। परभव का पाथेय धर्म है। जिसका जगत में कोई मित्र नहीं है उसका मित्र . धर्म है। जिसका कोई भाई नहीं है उसका भाई धर्म है। धर्म अनाथ का नाथ है. इस लिये धर्म करने में प्रमाद नहीं करो। ... ... . .:: : एक समय इन्द्र महाराजा ने भगवान श्री महावीर परमात्मा से विनती की कि हे प्रभु, आप जो आपका . आयुष्य थोड़ा वढावो तो भस्मग्रह से वच जाय। भगवान
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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