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प्रवचनसार कर्णिका
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लेकर कार्मण के साथ औदारिक मिश्रकाय योगले आहार करे, जबतक कि पर्याप्ति पूर्ण न हो तबतक, उसका नाम ओजाहार है। शरीर में तेल चोपड़ने से अर्थात् तेलका मालिश करने से चिकाश होती है और गरमी में पानी छांटने से यानी पानी छिटकने से प्यास मिट जाती है उसे लोमाहार कहते हैं । मुखमें कौर यानी ग्रास लेना उसे कवलाहार कहते हैं।
मनको ललचावे ऐसी वानगी को जीमते समय छोड़ .. दो । क्योंकि रसनेन्द्रिय को जीतने से धीरे धीरे सभी . इन्द्रियां जीती जा सकती हैं । ब्रह्मचर्य के रक्षक नियमों को ब्रह्मचर्य की वाड कहते हैं। उसके नव प्रकार हैं:
(१) जहां स्त्री अथवा नपुंसक नहीं होते वहां ब्रह्मचारी रहता है।
(२) स्त्रीके साथ रागसे वातें नहीं करना चाहिये । .
(३) जहां स्त्री-पुरुष सो रहे हों अगर कामभोग की . वातें कर रहे हों वहां भीतके सहारे खड़ा होकर ब्रह्मचारी को नहीं सुनना चाहिये।
(४) स्त्री वैठी होय उसी आसन से पुरुपको दो घड़ी . तक नहीं बैठना चाहिये और पुरुष वैठा हो उसी आसन से स्त्रीको तीन पहर तक नहीं बैठना चाहिये ।।
(५) रागसे स्त्रीके अंगोपांग नहीं देखना चाहिये ।
(६) पहले भोगे हुए विषयों को याद नहीं करना चाहिये।
(७) स्निग्ध आहार नहीं करना चाहिये । .. (८) और अधिक नीरस हो ऐसा भी अधिक आहार . नहीं करना चाहिये । .. ..... ...........