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________________ ३० प्रवचनसार कर्णिका जिस मनुष्य के मनमें तो कुछ हो वर्तन में कुछ दूसरा ही हो उसे माया प्रपंच कहते हैं। पुरुषों की काम वेदना घास को अग्नि के समान है। जिस प्रकार घास तुरन्त ही जलकर शान्त हो जाता है उसी प्रकार पुरुष की काम वेदना जल्दी शान्त हो जाती है। स्त्री की कामवेदना वकरी की लेंडी की अग्नि के समान होती है। और नपुंसक की . कामवेदना नगरदाह के समान होती है। ...: . परम सुखकी इच्छा हो तो जीवन में समता रखना.. सीख । जीवन में समता लाने के लिये मौन आवश्यक है। मौन में जो रहता है उसे मुनि कहते हैं । धर्मोपदेश के सिवाय व्यर्थ वात चीत में मुनि समय का दुरुपयोग नहीं करता है। गुप्त दान की अपेक्षा कीर्ति दान करने वाले दुनिया में बहुत हैं । अपने द्वारा किये गये दान को ज्यादा प्रसिद्धि में लाने की भावना वाले दान वांधे गये पुन्य को कीर्ति में वांट देते हैं । और चाह वाह कहलाने के रास्ते से हवा हवा के रूपमें उड़ा देते हैं। धर्म कार्य में धन शक्ति प्रमाणे खर्च करना चाहिये । परन्तु शक्ति को छिपाना नहीं चाहिये। अगर घर का मालिक घर के सभी सदस्यों को जिमा कर फिर जीमने की भावना वाला बने तो घर के सभी मनुष्य भी मालिक को पहले जिमाने की भावना वाले ' बन जाते हैं। . . :: '. जिनको पहनने के लिये पूरे कपड़े भी नहीं मिलते हों। और एक समय का भोजन भी महा मुश्केली से मिलता. __ हो पले मनुष्य दुनिया में बहुत हैं। जव कि साधु महाराज को उसकी कुछ भी चिन्ता नहीं करनी पड़ती है। उनकी
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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