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प्रवचनसार कणिका __ अति राग पूर्वक किये गये आश्रव के सेवन से गाढ और दीर्ध स्थिति प्रमाण कमवन्धन होता है।
संसार में कोई किसीका नहीं है। एक धर्म ही अपना . है। इसी लिये धर्म पहले और घर पीछे । अपने साता.. पिता तीर्थ के समान हैं। उत्तम पुरुष अपने साँबाप की सेवा हमेशा करते रहते ही हैं।
पुण्य मन्द पड़ने से आया हुआ सुख कभी भी टिक लकता नहीं है। इसलिये धर्माराधना द्वारा-पुण्य के भागीदार वनो यही शुभ अभिलाषा ।
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