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________________ प्रवचनसार कर्णिका जिससे अगर किसी चीजको लेनेका मन हो जाय तो वह उस चीजको नहीं ले सके। परन्तु जव आवश्रावक उपाश्रय में जाता है तो पैला लेके ही जाता है जिस से अगर रास्तेमें कोई दुःखी मिल जाय तो उले देनेके काम आवें. और उपाश्रयमें होनेवाले धार्मिक चन्दे में भी काम लगे। . धनकी प्राप्ति तो पुण्यके उदयसे ही होती है इसलिये, धर्मकार्य में धनको देना हो चाहिये । धर्मकार्य में धनको. लगाना ही चाहिये । दुःखी सार्मिक को देखकर शीघ्र : ही विना प्रेरणा के भी उसकी मदद करने को दौड़ जाना . चाहियें। साधर्मिक वात्सल्यमें एसी व्यवस्था होनी चाहिये जिससे जो लोग वर्मको नहीं समझते हैं वे भी धर्मको समझने लगे और धर्मभाव को प्राप्त हो जायें। . वीतराग का सेवक जीमते जीमते जूठा नहीं छोड़ता।' है। थाली धोकर के पीता है। जीमते जीमते बोलता . नहीं है। क्यों कि जूठे मुंह बोलने से कर्म बंधते हैं।. जीमते जीमते नीचे छींटे नहीं गिरें उसकी भी सावधानी. रखनी चाहिये। नीचे छींटा गिरे तो भी दंड भोगना पड़ता है । यह तो वीतराग का धर्म है। वीतरागदेव का धर्म इतर धर्मसे उत्तम है। वीतराग धर्मको माननेवाली आत्मा अन्यकी चिन्ता नहीं करती है किन्तु आत्मा की ही चिन्ता. करती है। समकिती:मनुष्यकी आत्मा मर करके देवगति में जाती है, नरकगति और तिर्यंचगति में नहीं जाती है । भरतक्षेत्रमें से एक भव करके मोक्ष जाया जा सकता: है। परन्तु उस प्रकारका आराधकभाव आना चाहिये ।: . अगर मोक्षमें जानेकी इच्छा है तो कुछ न कुछ तपकी आराधना और संयम का सेवन करना ही चाहिये। . ...
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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